Thursday 10 December 2009

सबसे पुराना अवैध धंधा



बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक जाहित याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार से ये सवाल किया कि अगर कानूनन वेश्यावृति पर रोक नही लगाई जा सकती तो क्यूँ न इसे वैध कर दिया जाए । कोर्ट का मत था कि यही एक रास्ता है जिसके सहारे मानव तस्करी (महिलओं की तस्करी) पर रोक लगाई जा सकती है।

सरकार द्वारा कराये गए अद्ययन के निष्कर्ष को पेश करते हुए डॉक्टर के. के. मुखर्जी ने २००३-०४ में कहा था कि जहाँ १९९७ में भारत में सेक्स वर्कर्स कि संख्या बीस लाख थी वही एक दशक से भी कम समय में इनकी संख्या बढ़कर तीस लाख हो गई है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि ३५% से भी ज्यादा वेशयाएं १८ वर्ष से कम क़ी आयु में ही इस व्यापार में धकेल दी जाती हैं।

रिपोर्ट में इस बात क़ी ओर भी इशारा किया गया कि अभी भी महिअलाओं के इस पेशे में आने का सबसे बड़ा कारण गरीबी , अशिक्षा , अग्यानता ही है। फिर भी भुमंदालिकरण ,विस्थापन ,सेवा छेत्र के विस्तार और सेक्स के प्रति लोगो के विचारों में आए बदलावों ने इस पेशे के बढ़ने में मदद की है।

यद्यपि वेश्यावृति के पेशे में अधिकांश महिलाएं निम्न वर्गों से ही होती हैं , लेकिन एक नया परिवर्तन देखने में आया है कि इस पेशे में ४०% महिलाऐं उच्च जातियों से संबन्धित हैं। साथ ही पेशे ने धर्मं कि सीमाओं को लांघ दिया है। बदलते समय के साथ इनकी पहुँच रेड एलर्ट एरिया से होते हुए होटल्स और अब साइबर कैफे तक हो चुकी है।

डा. के.के. मुखर्जी के अनुसार रेड एलर्ट एरिया में काम करने वाली औरतों को छोड़कर अधिकांश वेश्याएं नही चाहती कि उनके इस धंधे को वैधानिक किया जाए, क्यूंकि वो इस पर परदा डाले रहना चाहती हैं।

इसमे कोई दो राय नही कि बहुत सी मजबूर और धोखा खाई महिलाओं के लिए वेश्यावृति ही उनके जीवन यापन का एक मात्र सहारा है ,लेकिन ये पेशा हमारे समाज में सम्मान क़ी दृष्टि से नही देखा जाता। इन औरतों के लिए समाज की मुख्य धारा में लौटना लगभग असंभव होता है। वेश्यावृति कोई मौलिक समस्या नही है बल्कि ये मानव की कमजोरियों और व्यवस्थागत कमियों की ही व्युतपत्ति है। जब तक ये तत्त्व बने रहेंगे वेश्यावृति का उन्मूलन सम्भव नही है।

वेश्यावृति विरोधी कानून का सहारा लेकर पुलिस द्वारा सबसे ज्यादा इन वेश्याओ को ही परेशान किया जाता है।
इनके बच्चे क्या सिर्फ़ उनकी जिमेदारी हैं ? कल को अगर वो बच्चे किसी ग़लत राह पर जाएँ तो क्या हम सिर्फ़ वेश्यावृति को दोष देकर पल्ला झाड़ लेंगे?

वेश्यावृति को भले ही समाज हीन दृष्टि से देखता हो , लेकिन वेश्या कुछ भी होने से पहले एक इंसान है जिसे हमारी व्यवस्था ने ही जन्म दिया है। इसलिए ये हमारे व्यवस्था का ही दायित्व है की उन्हें और प्रताड़ित होने से बचाए।

संजीव श्रीवास्तव