Wednesday 29 August 2018

उस परफ्यूम की खुशबू आज तक नहीं भूल पाई वो

नेहा कुछ सोचते हुए बार-बार अपनी उंगलियों में दुपट्टा लपेटते और सुलझाते इधर-उधर टहल रही थी। रोज की तरह आज भी जय ने ही बात शुरू की- अच्छा तुम्हे क्या लगता है, तुम्हारे मार्क्स दसवीं में तो कम थे फिर बारहवीं में तुमने क्या कर डाला कि तुम फर्स्ट क्लास में पास हो गई?
नेहा - क्या बताऊं.... बस ये समझो कि किसी का जादू था, जो बस छा गया।
ये कहते हुए नेहा का चेहरा खिल उठा। ऐसे, जैसे अचानक किसी ने उसे गुदगुदी कर दी हो। और फिर उसने खुद ब खुद बोलना शुरू कर दिया - मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी। वहां सारी टीचर्स भी फीमेल ही थीं। हम कॉमर्स के क्लास में टीचर का इंतजार कर रहे थे कि तभी एक हैंडसम से शख्स ने क्लास में एंट्री की।
हम सब खड़े हो गए। उन्होंने बड़े ही सलीके से हमें बताया कि आज से वही हमें कॉमर्स पढ़ाएंगे।
जिस वक़्त नेहा ये बात कह रह थी उसे देख के लगा जैसे वो खुद को उन लम्हों में धकेल देना चाहती है। उसकी आंखें चमकने लगीं थीं चेहरा सुर्ख लाल हो गया था।
तभी जय ने उसे कुरेदते हुए चुटकी ली - तुम्हारा चेहरा इतना खिल क्यों गया, अपने कॉमर्स टीचर का नाम लेते ही?
नेहा - क्या बताऊं... अगर तुम मेरी जगह होते तो तुम्हारा भी यही हाल होता। वो थे ही ऐसे। एक-एक टॉपिक को ऐसे समझाते जैसे नर्सरी के बच्चों को कोई अल्फाबेट पढ़ा रहा हो। इसके बाद भी एक-एक लड़की से पूछते, समझ में आया या नहीं?
न जाने कैसे उन्हें ये पता लग ही जाता कि बच्चों को कहीं न कहीं परेशानी है। फिर से उसी टॉपिक को दूसरे ढंग से समझाते। इन सबके बीच न जाने कैसे मैं उनकी फेवरेट स्टूडेंट बन गई।
जब भी कोई टॉपिक रिपीट करना होता या दोबारा समझाना होता तो वो मुझे बुलाते और कहते, अब तुम समझाओ पूरे क्लास को। उनकी पढ़ाने की स्टाइल इतनी अच्छी थी कि जल्द ही गर्ल्स कॉलेज के वो सबसे फेवरेट मेल टीचर बन गए। यहां तक कि जब वो क्लास के बाहर भी किसी को कुछ समझाते तो लड़कियां उन्हें चारों तरफ से घेर लेतीं।
स्टूडेंट्स के उलट कॉलेज की फीमेल टीचर्स को नए कॉमर्स टीचर खटकने लगे। कई बार मैंने अपनी टीचर्स को ये कहते सुना कि देखो, कन्हैया जी कैसे अपनी गोपियों से घिरे हुए हैं।
आर्ट्स और साइंस की लड़कियां तो न जाने क्या-क्या बातें करतीं उनके बारे में। ये तक कहा जाने लगा कि देखो वो लड़की तो अपना दुपट्टा भी ठीक से नहीं रखती उनके सामने। मुझे ये बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थीं। मुझसे रहा नहीं गया और एक दिन मैंने ये सारी बातें उन्हें बता दीं।
ये कहते हुए नेहा अचानक रुक गई और दुपट्टे को जोर से अपनी उंगलियों में लपेटने लगी। कॉलेज छोड़ने के दस साल बाद भी समाज की उस बेरुखी से वो अब तक आहत थी। उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि जो इनसान दिमाग के रास्ते होते हुए दिल तक में जगह बना ले उसके बारे में कोई इतनी खराब बात कैसे कर सकता है।
नेहा का ये दर्द साफ बयां कर रहा था कि कॉमर्स के उस टीचर ने सफेद चॉक से ब्लैक बोर्ड पर न जाने ऐसा क्या लिखा जिसके निशान अट्ठारह साल की एक युवा और कोमल लड़की के दिल पर ऐसे पड़े कि मिटाने की तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी वो जस के तस मौजूद थे। यहां तक कि उस टीचर के परफ्यूम की खुशबू भी उसकी नाकों में अब अब तक बसी हुई थी।
नेहा ने खुद ही बताया कि आज भी जब कहीं उस परफ्यूम की खुशबू नाक में पड़ती है तो वो याद आ जाते हैं।
जय ने देख लिया कि नेहा भले ही छत पर उसके साथ खड़ी है लेकिन, उसकी रूह ग्यारहवीं की उस क्लास में पहुंच चुकी थी जहां वो और उसके फेवरेट कॉमर्स के सर के अलावा और कोई नहीं था। जय ने धीरे से आवाज लगाई - नेहा... क्या हुआ, कहां खो गई?
नेहा - क्या कहूं यार, वो दिन मेरी अब तक की जिंदगी के सबसे खूबसूरत दिन थे।
इतना कहते हुए नेहा की आंखें फिर से चमक उठीं और चहकते हुए उसने बोला - तुम्हें पता है... वो ऐसे अकेले टीचर थे जो मेरे घर तक आए थे। एक दिन उन्होंने मुझे अपनी बाइक से मेरे घर तक छोड़ा।
फिर अचानक ही उसके चेहरे पर तनाव पसर गया। नेहा ने भरे मन से कहा - उस दिन मम्मी ने मुझे सर की बाइक से उतरते देख लिया था। जैसे ही मैं घर में घुसी उन्होंने मुझसे कहा - अगर पापा को पता चला कि तू एक लड़के के साथ स्कूल से घर आई थी तो पता है क्या हाल होगा तेरा?
इतना कहते ही नेहा अचानक चुप हो गई। कुछ देर तक जय भी कुछ नहीं बोला, फिर दोनों अपने-अपने कमरे की तरफ चल दिए।

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