Thursday 9 February 2012

अपने देश का यह शख्स है आतंक की दुनिया का सबसे खूंखार 'आका'


...'सुपारी किलर' एपिसोड - 6

80 के दशक में मुंबई में स्मग्लिंग से लेकर अपराध के हर तरीकों पर वरदराजन मुदलियार, करीम लाला, मस्तान मिर्जा उर्फ़ हाजी मस्तान का नाम एक 'ब्रांड' बन चुका था. इनके लिए ब्रांड शब्द का इस्तेमाल थोड़ा अटपटा जरुर लगता है, लेकिन ये छोटा सा शब्द काली दुनिया के इनके बड़े साम्राज्य को समझने का बस एक शॉर्टकट तरीका है.




वरदराजन मुदलियार, हाजी मस्तान और करीम लाला के बाद जिस नाम ने इनकी जगह लेना शुरू किया वो था 'दाउद इब्राहीम'. वैसे तो इस नाम से ज्यादातर लोग परिचित हैं ही. सभी को पता है कि दाउद जिस कंपनी (गैंग) को चलाता है, उसे ही शॉर्ट में 'डी-कंपनी' भी कहा जाता है. दाउद पर आधारित अपनी इस श्रृंखला में हम आपको कुछ ऐसी सच्चाइयों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्हें कम ही लोग जानते हैं.




डर के साथ नफरत फैलाने वाला 'पहला डॉन'





मुंबई में जो लोग अब तक डॉन के नाम से अपना प्रभाव रखते थे वो भले ही स्मग्लिंग जैसे गैरकानूनी काम में लगे हुए थे, और उनके नाम का लोगों में डर था, लेकिन दाउद इस दुनिया में उभरा ऐसा पहला नाम था जिसने डर के साथ नफरत फैलाने का भी 'धंधा' शुरू किया. इसकी शुरुवात 1990 में उसके अफगानिस्तान जाने से ही हो गई थी, लेकिन 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सीरियल बॉम्ब ब्लास्ट ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी.




इसके बाद तो उसका नाम देश ही नहीं पूरी दुनिया में चर्चा में आ गया. 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकी हमले से लेकर, 2003 में भारतीय संसद पर हमला, गुजरात में ब्लास्ट जैसी वारदातों से उसका नाम जुड़ने लगा. जल्द ही पता चला कि उसके सम्बन्ध अल-कायदा से लेकर ओसामा बिन लादेन तक से हैं.




दुनिया भर में बन गया आतंक का पर्याय




2003 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने दाउद को 'अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी' घोषित किया, जबकि 2003 में ही भारत ने भी आतंकियों की हिट लिस्ट में दाउद का नाम सबसे ऊपर लिख दिया. अपराध और आतंक की उसकी दुनिया जिस तेजी से बढ़ रही थी, उसी तेजी से उसकी बदनामी का ग्राफ भी उठ रहा था. 2008 में फ़ोर्ब्स ने 'दुनिया के 10 सबसे खूंखार अपराधियों' की सूची में दाउद का नाम शामिल किया.




बढ़ते आतंक और मासूमों को निशाना बनाने का उसका यह खेल भले ही बहुत तेजी से पनप रहा था, लेकिन बढ़ रहे अत्याचार ने अपने ही गैंग में उसका सबसे बड़ा विरोधी पैदा कर दिया. इस शख्स ने दाउद के मजबूत किले में ऐसी सेंध लगाई कि एक-एक कर इसकी दीवारें ढहने लगीं.




'सुपारी किलर...' की अगली कड़ी में जानिए क्यों और कैसे इस अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी की जड़ों को खोदने का काम उसके ही एक गुर्गे ने किया...

जुर्म की दुनिया के बादशाह का यहां हुआ फकीरों से भी बुरा हाल


...'सुपारी किलर' एपिसोड - 5


पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे जेल से निकलने के बाद हाजी मस्तान ने अपने काम और मकसद को आसानी से बदल लिया और फ़िल्मी दुनिया में अपना सिक्का जमाना शुरू कर दिया.





कहा जाता है हाजी मस्तान को शुरू से ही फिल्मों से काफी लगाव था और वह फिल्म अभिनेत्री 'मधुबाला'को बेहद पसंद करता था. इत्तेफाक से उसकी मुलाक़ात एक ऐसी अदाकारा से हुई जिसकी शक्ल मधुबाला से काफी मिलती थी. हाजी मस्तान उसकी खूबसूरती पर फ़िदा हो गया. 'सोना'नाम की इस अदाकारा के लिए उसने कई फिल्मों में पैसे भी लगाए और अंततः उससे शादी कर ली. हाजी ने सोना को जूहू में देव आनंद साहब के घर के बगल में बना एक बंगला भी गिफ्ट किया.





एक साइकिल वाला बना एक आलिशान कोठी का मालिक





हाजी मस्तान का बचपन बेहद अभाव और गरीबी में बीता था. बड़ा बनने का सपना और गरीबी से लड़ाई, ये दोनों चीजें जब एक साथ चल रही हों, तो चलने वाला अक्सर इस दोराहे के भंवर में उलझ जाता है.





ऐसे में इंसान या तो परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देता है या व्यवस्था के खिलाफ खड़ा हो जाता है. ऐसा शायद इसलिए भी होता है कि अक्सर, खुद को नैतिकता के ठेकेदार कहने वाले संत, महात्मा या नेता के पास या तो ऐसा युवा पहुंच नहीं पाता या शायद पहुंचने ही नहीं दिया जाता.





हाजी ने स्मग्लिंग से काफी पैसा बनाया था और उस पैसे को उसने पानी की तरह खर्च भी किया. बचपन में जब वह अपनी साइकिल की दुकान से वापस अपनी बस्ती जाता था तो रास्ते में बने बड़े-बड़े बंगले हमेशा उसे ललचाते थे.





दरअसल,अपनी इन्हीं इच्छाओं को पूरा न कर पाने की बेबसी ने ही उसे एक साधारण साइकिल वाले से मुंबई का सबसे बड़ा डॉन बना दिया था. इसलिए जब उसके पास पैसे आए तो सबसे पहले उसने अपनी इन्हीं दबी इच्छाओं को साकार करने की कोशिश की और मुंबई के सबसे पॉश इलाके 'पेद्दा रोड' पर बने सोफिया स्कूल के ठीक सामने एक आलिशान हवेली खरीदी.





इस हवेली की छत से समन्दर साफ़ दिखाई देता था. कहते हैं हाजी मस्तान हवेली के ऊपरी हिस्से में बने एक छोटे से कमरे में रहता था जहां से वह अक्सर समन्दर को निहारता रहता था. शौक़ीन मिजाज हाजी को पढने का शौक था या नहीं ये कह पाना तो मुश्किल है, लेकिन उसके कमरे में तमिल के सभी बड़े अखबार और पत्रिकाएं जरुर आते थे. दरअसल, यही एक भाषा थी जिसे वह पढ़ सकता था.





हाजी मस्तान ने न सिर्फ बम्बई के पॉश इलाके में एक बड़ी कोठी खरीदी बल्कि, वह जब भी अपने बंगले से निकलता तो उस जमाने में स्टेटस सिम्बल कहलानी वाली 'मर्सिडीज बेंज' कार और महंगी ब्रांडेड सिगरेट और सफ़ेद डिजाइनर पोशाक में ही दिखाई देता.





जुर्म से कमाए पैसे के बल पर बनना चाहता था 'मसीहा'





हाजी मस्तान को जब यह लगने लगा कि अब जुर्म की दुनिया में उसके प्रभाव के गिरने का वक़्त आ गया है, ठीक तभी उसने इस दुनिया से नाता तोड़ने और राजनीति की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया.





दक्षिण मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाकों में उसने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया. इलाके के लोगों के साथ उठने-बैठने और त्योहारों, शादी-विवाह के मौकों पर लोगों की आर्थिक मदद करने की वजह से जल्दी ही हाजी इन लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया. इसके साथ ही उसने ऐसी संस्थाओं की भी मदद करनी शुरू कर दी जो युवाओं को नशे की लत से छुटकारा दिलाने में लगे थे.





80 के दशक में उसने सार्वजानिक सभाएं करना शुरू कर दिया और इसी दौरान उसने दलित नेता 'जोगेंद्र कावडे' के साथ मिलकर 'दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ' नाम की पार्टी का गठन किया. जुर्म की दुनिया से बनाई काली कमाई से मसीहा बनने का उसका सपना केवल सपना ही रह गया.





अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बनकर भी हाजी मस्तान फिल्म और राजनीति की दुनिया में एक खोटा सिक्का ही साबित हुआ. चमकने (या चलन में आने) की लाख कोशिशों के बाद भी उसे चलन से बाहर होना पड़ा.





शायद यहां मिली असफलता उसके दिल में बैठ गई और उसे दिल की बीमारी हो गई. 1994 में दिल की बीमारी की वजह से ही उसका देहांत हो गया. कहते हैं जिंदगी के अंतिम दिनों में उसे अपने परिवार की काफी चिंता होने लगी थी, जिसकी उसने काफी उपेक्षा की थी.





जुर्म की दुनिया से भले ही एक और नाम मिट गया लेकिन, उसे आगे बढ़ाने के लिए हाजी मस्तान के गैंग में से एक लड़का तैयार हो चूका था जिसे लोग 'दाउद इब्राहीम' के नाम से जानते हैं. अगली कड़ी में मिलिए गुनाहों की दुनिया के इस नए 'सुपारी किलर' से...