कुम्भ की कथा का वर्णन विष्णुपुराण में मिलता है। जब देवताओं और असुरों में संग्राम हुआ तो देवता हारने लगे। ऐसे में उन्होंने श्री विष्णु से मदद की गुहार लगाई। विष्णु ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। विष्णु के अनुसार इस समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत को पीकर देवता अमर हो जायेंगे और फिर असुरों को आसानी से हरा सकेंगे।
असुर अमृत के लालच में देवताओं के साथ समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। विष्णु के अवतार कछप की पीठ पर विराट मद्रांचल पर्वत को मथनी बनाया गया और नाग राज वासुकी को रस्सी बना कर असुरों और देवताओं ने समुद्र मंथन शुरू किया। समुद्र मंथन से एक-एक कर कुल चौदह महारत्न निकले। इस मंथन से हलाहलविष भी निकला जिसे पीने से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वो नीलकंठ कहलाए। समुद्र मंथन के अंत में धनवन्तरी अमृत-कलश ले कर प्रकट हुए। अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों में पुनः युद्ध छिड गया।
युद्ध को रोकने के लिए विष्णु ने मोहनी (अत्यंत सुन्दर स्त्री) का रूप धारण किया। मोहनी ने दोनों के बीच समझौता कराया कि वो एक-एक कर देवताओं और असुरों को अमृत-पान कराएगी। मोहनी ने छल से सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिलाना शुरू कर दिया। असुरों में से एक असुर राहु को इस बात का पता लग गया और वो वेश बदल कर देवताओं के बीच जा बैठा। सूर्य और चन्द्रमा को इस बात का पता लग गया। उन्होंने मोहनी को इस बात से परिचित कराया लेकिन तब तक वो अमृत-पान कर चुका था। इस पर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया। उसके दो हिस्से ही राहू और केतु कहलाए। चूँकि वो अमृत पी चुका था,इसलिए ऐसा माना जाता है कि वही राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा पर अपनी काली छाया डाल कर ग्रहण का निर्माण करते हैं।
इसी बीच अमृत को असुरों से बचाने के लिए इन्द्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर वहां से भागने लगे। वो लगातार १२ दिन तक भागते रहे। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदे १२ स्थानों पर गिरी। जिनमे से चार स्थान पृथ्वी पर और आठ स्वर्ग पर थे। पृथ्वी पर ये चार स्थान थे - प्रयाग (इलाहाबाद), नासिक, उज्जैन और हरिद्वार। देवताओं का एक दिन मनुष्यों के १२ साल के बराबर होता है, इसीलिए हर बारहवे साल इन स्थानों पर महाकुम्भ का अयोजन होता है।
इस वर्ष ये पवित्र आयोजन हरिद्वार में हो रहा है। इस आयोजन में देशभर के १३ अखाड़े शामिल होंगे। इनमे से ७ अखाड़े दशनामी सन्यासियों के हैं,जिनमे नागा साधु शामिल होते हैं। अखाड़ों के स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। पहला शाही स्नान १२ फ़रवरी को, दूसरा १५ मार्च को और प्रमुख शाही स्नान १५ अप्रैल को है। इस महापर्व की पूर्णाहुति २८ अप्रैल को, वैशाखी अधिमास पूर्णिमा स्नान के साथ होगी। उत्तराखंड सरकार ने कुम्भ से सम्बंधित एक वेबसाईट का भी निर्माण किया है जिसपर महापर्व से सम्बन्धित सूचना पायी जा सकती है। वेबसाइट का लिंक है - http://www.kumbh2010haridwar.gov.in
संजीव श्रीवास्तव
युद्ध को रोकने के लिए विष्णु ने मोहनी (अत्यंत सुन्दर स्त्री) का रूप धारण किया। मोहनी ने दोनों के बीच समझौता कराया कि वो एक-एक कर देवताओं और असुरों को अमृत-पान कराएगी। मोहनी ने छल से सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिलाना शुरू कर दिया। असुरों में से एक असुर राहु को इस बात का पता लग गया और वो वेश बदल कर देवताओं के बीच जा बैठा। सूर्य और चन्द्रमा को इस बात का पता लग गया। उन्होंने मोहनी को इस बात से परिचित कराया लेकिन तब तक वो अमृत-पान कर चुका था। इस पर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया। उसके दो हिस्से ही राहू और केतु कहलाए। चूँकि वो अमृत पी चुका था,इसलिए ऐसा माना जाता है कि वही राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा पर अपनी काली छाया डाल कर ग्रहण का निर्माण करते हैं।
इसी बीच अमृत को असुरों से बचाने के लिए इन्द्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर वहां से भागने लगे। वो लगातार १२ दिन तक भागते रहे। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदे १२ स्थानों पर गिरी। जिनमे से चार स्थान पृथ्वी पर और आठ स्वर्ग पर थे। पृथ्वी पर ये चार स्थान थे - प्रयाग (इलाहाबाद), नासिक, उज्जैन और हरिद्वार। देवताओं का एक दिन मनुष्यों के १२ साल के बराबर होता है, इसीलिए हर बारहवे साल इन स्थानों पर महाकुम्भ का अयोजन होता है।
इस वर्ष ये पवित्र आयोजन हरिद्वार में हो रहा है। इस आयोजन में देशभर के १३ अखाड़े शामिल होंगे। इनमे से ७ अखाड़े दशनामी सन्यासियों के हैं,जिनमे नागा साधु शामिल होते हैं। अखाड़ों के स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। पहला शाही स्नान १२ फ़रवरी को, दूसरा १५ मार्च को और प्रमुख शाही स्नान १५ अप्रैल को है। इस महापर्व की पूर्णाहुति २८ अप्रैल को, वैशाखी अधिमास पूर्णिमा स्नान के साथ होगी। उत्तराखंड सरकार ने कुम्भ से सम्बंधित एक वेबसाईट का भी निर्माण किया है जिसपर महापर्व से सम्बन्धित सूचना पायी जा सकती है। वेबसाइट का लिंक है - http://www.kumbh2010haridwar.gov.in
संजीव श्रीवास्तव
2 comments:
वाह हुजूर चलिए आपके ब्लोग पर पहुंच कर कुंभ की कथा भी बांच ली । बहुत ही सुंदर जी ,बहुत ही उम्दा लेख है आपका , नियमित लिखें आभार ,और हां word verification हटा देंगे तो टिप्पणीकर्ता को आसानी होगी
अजय कुमार झा
mai illahabad ke mahakumbh mei jaa chuki, 2001 mei. Itne saare log kahi aur ek saath nahi dikhte....bada hi anootha drishya hota hai.
Post a Comment