Monday, 28 November 2011
प्रतिद्वंदिता,पत्रकारिता, हत्या, जेल कहीं ये किसी बड़े खतरे का संकेत तो नहीं?
गत 11 जून 2011 को मुंबई में अंग्रेजी अखबार में काम करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे (जे डे) की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई. जांच में पता चला कि इस हत्या को छोटा राजन के गुर्गों ने अंजाम दिया है क्योंकि राजन लगातार अपने खिलाफ लिखे जाने की वजह से जे डे से नाराज था.
जांच और आगे बढ़ी तो पता चला कि छोटा राजन के गुर्गों को जे डे की टाइमिंग और लोकेशन बताने में मुंबई की ही एक महिला पत्रकार का हाथ था. एशियन एज के लिए काम करने वाली 37 वर्षीय पत्रकार थी 'जिगना वोरा'. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है.
अभी तक जो तथ्य सामने आये हैं उनसे पता चला है कि जिगना वोरा और जे डे दोनों ही क्राइम बीट पर काम करते थे और कमोबेश ख़बरों के लिए दोनों ही अंडरवर्ल्ड के लोगों से लेकर पुलिस के लोगों तक अपनी पहचान रखते थे. इन्हीं सूत्रों में एक नाम था फरीद तानशा जिसे छोटा राजन का आदमी माना जाता था. हालाँकि जून 2010 में उसकी भी हत्या हो गई.
ऐसा माना जाता है कि तानशा के घर पर ही इन दोनों का आमना-सामना हुआ और अपने सूत्रों के इस्तेमाल को लेकर दोनों में काफी कहासुनी हुई. तभी से जिगना ने छोटा राजन को जे डे के खिलाफ भरना या भड़काना शुरू कर दिया. जे डे की ख़बरों और जिगना के फीडबैक से छोटा राजन का दिमाग घुमा और गुस्से में उसने जे डे को ख़त्म करने का फरमान जारी कर दिया.
हालाँकि हत्या के बाद मीडिया में ये खबरे आईं कि छोटा राजन ने माना है कि जे डे की हत्या कराना गलत था और एक पत्रकार के तौर पर वह जो कुछ भी लिख रहा था वो उसकी ड्यूटी थी न कि राजन से कोई व्यक्तिगत खुन्नस.
एक्सक्लूसीव और ब्रेकिंग न्यूज लेने कि जल्दबाजी और रातोरात बड़ा पत्रकार बन जाने की चाहत ने एक गंभीर और वरिष्ठ पत्रकार की जान ले ली और एक दूसरे वरिष्ठ और गंभीर पत्रकार को अपराधी बना सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.
खुद मै भी इसी पेशे से जुड़ा हूँ. कॅरियर के पहले दिन से ही मैंने अपने आस-पास ख़बरों के लिए लोगों को आपस में लड़ने-झगड़ने से लेकर फब्तियां कसते, बुराई करते, नीचा दिखाने के मौके तलाशते देखा. शुरू में लगा कि शायद इसे ही पेशेवर और प्रतियोगी माहौल (professional and competetive enviroment) कहते हैं.
न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि इस पेशेवराना और प्रतियोगी माहौल को निर्मित करने वाली शक्तियों और उनके मकसद को स्पष्ट किया जाना चाहिए. अन्यथा बिना गोली चले भी कई प्रतिभाशाली लोगों का कत्ल हो सकता है या शायद रोज हो ही रहा हो, क्या पता?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment