Tuesday 10 January 2012

इस शख्स ने रखा था मुंबई में अंडरवर्ल्ड की नींव का पहला पत्थर...


...'सुपारी किलर' एपिसोड-1


नया भारत या कहें आजाद भारत जब अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था, लगभग उसी वक्त देश के युवाओं के लिए एक शहर उनके सपनो में अपनी जड़े जमा रहा था. इस शहर में पसरा समंदर हर नौजवान को जैसे ये यकीन दिला रहा था कि उसकी किस्मत पर कितना भी बड़ा ताला क्यों न लगा हो, इस महासागर की गहराई में उसे खोलने वाली हर चाबी मौजूद है. किसी भी सपने को सच कर दिखाने की इसी जादूगरी ने ही शायद इस शहर मुंबई को 'मायानगरी' का तमगा दिला दिया.



'अयूब लाला' था पहला बड़ा गैम्बलर






मुंबई अपनी रंगीनियत और चकाचौंध से लेकर अपने दामन में समेटे काले धंधों (अंडरवर्ल्ड) की वजह से भी मशहूर (या शायद बदनाम भी) होती जा रही थी. माना जाता है कि इस शहर में संगठित अपराध की शुरुआत गैम्बलिंग और नशीले पदार्थों की तस्करी से हुई जिसमे पहला बड़ा नाम पठान अयूब खान पठान उर्फ़ 'अयूब लाला'का था. कहते हैं अफगानिस्तान से आकर मुंबई में बसे लगभग 13000 अफगानियों के एक संगठन 'पख्तून जिरगा-ए-हिंद' का संस्थापक प्रमुख भी अयूब लाला ही था.



मुंबई में चलने वाले तमाम गैम्बलिंग क्लब जिसे यहां के मारवाड़ी, मराठी या मुसलमान चलाते थे, उन सब पर अयूब लाला का नियंत्रण था. अयूब भले ही माफिया के तौर पर बदनाम था, लेकिन उसके बारे में एक दिलचस्प बात कही जाती है कि उसने कभी किसी को एक तमाचा भी नहीं मारा. अपने बेटे कश्मीरी लाला की हत्या के बाद उसने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया और 40 के दशक में अपना सारा कारोबार करीम लाला को सौंप दिया जो डोंगरी (साउथ मुंबई) में शराब का व्यापार करता था.



'वर्धाभाई' ने चलाई थी अंडरवर्ल्ड के दुनिया की पहली हुकूमत!






मुंबई (उस वक्त के बम्बई) में भले ही संगठित अपराध की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन इस दुनिया के बेताज बादशाह के तौर पर जिस एक नाम ने आने वाले लगभग दो दशकों तक (1960-80) राज किया वो नाम था 'वरदराजन मुदलियार' का. मुदलियार के समय में ही करीम लाला और हाजी मस्तान भी मुंबई में सक्रीय थे लेकिन, इन तीनों में मुदलियार की पहचान गरीबों के बीच एक मसीहा की बन चुकी थी. वरदराजन की अपनी एक समानान्तर न्याय-व्यवस्था चलती थी जिसमे वह अपने लोगों के लिए फैसले करता था.



'वर्धाभाई' के नाम मशहूर वरदराजन मुदलियार पैदा भले ही तमिलनाडु के 'तूतीकोरिन' (1926) में हुआ था, लेकिन उसने रोजी-रोटी की शुरुआत बम्बई के विक्टोरिया टर्मिनल स्टेशन से एक कुली के तौर पर की. जल्दी ही उसने जुएखोरी और नशीले पदार्थों की तस्करी के धंधे में अपने कदम रखे. यहां उसका दबदबा तेजी से बढ़ने लगा और जल्द ही उसने गोदी में चोरी (डॉक थेफ्ट), कान्ट्रैक्ट कीलिंग, और स्मग्लिंग का काम भी शुरू कर दिया.






एक पुलिसवाले ने हिला कर रख दी थी इस माफिया की सत्ता






80 के दशक में वह मुंबई की काली दुनिया (अंडरवर्ल्ड ) का सबसे बड़ा नाम बन चुका था. अपने इलाके (माटुंगा) में हर साल वह बड़े ही भव्य तरीके से गणेश पूजा का आयोजन भी करवाता था. लेकिन इसी समय मुंबई पुलिस के एक अधिकारी 'वाई सी पवार' ने मुदलियार को अपना टार्गेट बनाया और एक-एक कर उसके सभी गुर्गों को या तो मार गिराया या जेल में डाल दिया. अपनी जमीन खिसकती देख मुदलियार ने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया. यहां से निकल कर उसने चेन्नई में शरण ली जहां 62 साल की उम्र (1988) में उसकी मौत हो गई.






कहते हैं उसने अपने अंतिम समय में 'बड़ा राजन' नाम से मशहूर गैंगेस्टर 'राजन नायर' से मदद मांगी. मुदलियार के जाने से अंडरवर्ल्ड की दुनिया के सरताज की जगह खाली हो गई थी जिसपर जल्द ही हाजी मस्तान ने कब्ज़ा जमा लिया.



वरदराजन की जिंदगी उसके मौत के बाद तब और भी दिलचस्प बन गई जब दक्षिण के मशहूर फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने उसपर 'नायकम' नाम से फिल्म बनाई जिसमें कमल हासन ने मुख्य भूमिका अदा की. फिरोज खान ने 1988 में इसी पात्र को ध्यान में रखते हुए 'दयावान' का निर्माण किया.






'सुपारी किलर' की अगली श्रृंखला में जानिए कैसे हाजी मस्तान बना अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन और किसने ख़त्म किया उसका साम्राज्य...

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