Saturday, 31 October 2009

उफ़ ये भिखारी ! ! !


दिल्ली हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर दिल्ली से भिखारियों को सिर्फ़ इस आघार पर निकाला जाता है कि इससे कॉमन वे़ल्थ गेम्स के दौरान आए लोगों के सामने भारत कि ग़लत छवि बनेगी तो ये अन्यायपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में अपराधी तो रह सकते है लेकिन भिकारी नही, ये कैसी विडम्बना है।

गरीबी एक अभिश्राप है, मुन्सी प्रेम चंद ने इस सच को अपने लगभग हर उपन्यास में दिखाने की कोशिश की है। पूस की रात उपन्यास का वो मंजर कौन भूल सकता है जब हल्कू अपने बेटे के साथ चौखट पर बैठ कर अपने बहू के मरने का इंतजार करता है। उसके मरने पर अन्तिम संस्कार के नाम पर वो दोनों गाँव भर से चंदा जुटाते है और फिर मिलकर उसी पैसे से स्वादिस्ट खाने और शराब का मजा लूटते हैं।

ये कथानक इस बात का संकेत है कि गरीबी इंसान को किस कदर बेबस और बेगैरत बना देती है। गरीब जहा भी होगा वो उस समाज के लिए अभिश्राप ही बना रहेगा। शायद, कोर्ट भी यही कहना चाहती है कि गरीब को हटाना कोई समाधान नही है। अगर हटाना ही है तो गरीबी हटाओ।

संजीव श्रीवास्तव

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