Sunday 1 November 2009

पुस्तक समीक्षा



Two States: the story of my marriage.

लेखक : चेतन भगत
प्रकाशक : रूपा एंड कम्पनी
प्रकाशन वर्ष : २००९
पृष्ठ : २६९
मूल्य : ९५ रूपये ।

कहतें हैं कि रियल लाइफ और रील लाइफ मे सबसे बड़ा अन्तर ये होता है कि रियल लाइफ में कोई रिटेक नही होता। जबकि सच्चाई ये है कि रील लाइफ में सबकुछ डायरेक्टर के मनमुताबिक होता है, लेकिन रियल लाइफ में शायद ही कभी ऐसा होता है।चेतन भगत कि इस नई किताब में सबकुछ वैसा ही घटता है जैसा कि उपन्यास के नायक और नायिका चाहतें है।

अनन्या और कृष आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाई करते हैं । दोनों में प्यार हो जाता है, दो साल तक प्यार की क्लासेस चलती हैं , जब एग्जाम यानि शादी की बारी आती है तो उन्हें अपने घर वालों की याद आती है। अनन्या दक्षिण भारती ब्राहमण है, जबकि कृष उत्तर भारतीय पंजाबी।

अनन्या के माँ-बाप उत्तर भारतीयों से घृणा करतें हैं और उसकी शादी किसी दक्षिण भारती ब्राहमण से ही करना चाहतें हैं । दूसरी ओर कृष की माँ अपने बेटे की शादी एक रईस पंजाबी घर में करना चाहती है, क्यूंकि लड़की के बाप के पास ६ पेट्रोल पम्प हैं और उनकी सिर्फ़ दो लड़किया ही हैं ।

इसके बाद की पूरी कहानी इस बात को बय्याँ करती है की कैसे एक पंजाबी लड़का अपने तमिल ब्राहमण ससुराल वालोँ को और एक तमिल लड़की अपने पंजाबी सास- ससुर को शादी के लिए राजी करती है ।

सबकुछ ऐसे घटता है जैसे किसी बी ग्रेड हिंदी फिल्मो में होता है। पहले लड़का अपने होने वाले सास-ससुर को मनाने के लिए फिल्मी तरीके से प्लान बनाता है और उसके सारे तीर निशाने पर लगते हैं। फिर लड़की कोशिश करती है। बेचारी ख़ुद को नाकाम समझ कर वापस चली जाती है कि तभी एक चमत्कार होता है और ...।


कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है , साहित्यकार और आम आदमी में यही अन्तर होता है कि साहित्यकार समाज में घटने वाली घटनाओं को कलमबद्ध करने की काबिलियत रखता है, लेकिन आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना है कि ये बाज़ारवाद के शिकंजे में बुरी तरह फँस चुका है । केवल फिल्में ही नही आज का साहित्य... ,बल्कि साहित्यकार भी इससे बच नही पाया है।

आज सफल वही है जो अपने उत्पाद को बाज़ार में बेच सकने की काबिलियत रखता है। कार से लेकर वाशिंग पाउडर तक के विज्ञापन में बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्यूंकि भावनाएं भी बिकती हैं। मुंशी प्रेमचंद की रचना में शायद वो तत्व नही था जो वेद प्रकाश की जासूसी भरी उत्तेजक कहानियों में है। लेकिन क्या दोनों को एक ही श्रेणी में रखा जा सकता है। अन्तर सिर्फ़ उद्देश्य का है। चेतन भगत की पिछली रचनाएँ बेस्ट सेलर रही हैं। अब ये साहित्यकार के ऊपर है कि वो अपनी रचना किसे समर्पित करना चाहता है ...बाज़ार को या समाज को। क्यूंकि बाज़ार समाज को आइना दिखाने में नही बल्कि बेस्ट सेलर हो़ने में यकीन रखता है.... । लेकिन वेद प्रकाश और मुंशी प्रेमचंद के बीच अन्तर तो हमेशा ही रहेगा, बाज़ार कितना ही शक्तिशाली क्यूँ न हो जाए वो इस अन्तर को मिटा नही सकता ।


संजीव श्रीवास्तव

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