Wednesday, 2 November 2011

पुस्तक समीक्षा: रेवोल्यूशन 2020:लव, करप्शन, एम्बिशन


पुस्तक : रेवोल्यूशन 2020 :लव, करप्शन, एम्बिशन
लेखक : चेतन भगत
भाषा : इंग्लिश
प्रकाशक : रूपा एंड कंपनी
पृष्ठ : 296
मूल्य : 140


महज कुछ अंकों का उतार-चढाव किसी को जीवन भर के लिए लूजर तो किसी को हमेशा के लिए स्टार बना देता है. अंकों के आधार पर इंसान को तौलने की इस परंपरा का किसी की जिंदगी पर कितना असर पड़ सकता है इसी को चेतन भगत ने अपने नए उपन्यास (Revolution2020) का केन्द्रीय विषय बनाया है.

क्या है 'रेवोल्यूशन 2020'

बनारस के एक कॉन्वेंट स्कूल में पढने वाले तीन गहरे दोस्त (गोपाल, राघव, आरती) अपने जीवन को ठीक उसी तरह जी रहे होते हैं जैसे इस उम्र में सभी जीते हैं. जमकर मौज-मस्ती, खेल-खिलवाड़ और साथ में पढाई. अचानक एक दिन उनमे से एक (गोपाल) को इस बात का एहसास होता है कि जिस राघव को उसने कभी गंभीरता से नहीं लिया आज वही राघव उससे बहुत आगे निकल चुका है. ठीक एक दिन पहले तक दोनों बिल्कुल एक जैसे लगते थे लेकिन सिर्फ एक रिजल्ट ने राघव को 'स्टार' और गोपाल को 'स्पॉट बॉय' बना दिया.

राघव को किसी सहारे की जरुरत नहीं थी. उसका अपना एक पूरा परिवार था, लेकिन गोपाल हमेशा अधूरा रहा. कहते हैं पिता की कमी को तो शायद भरा जा सकता है लेकिन मां की कमी को कोई नहीं भर सकता. शायद इसी ममता की कमी ने उसे आरती का दीवाना बना दिया.

जो चीज उसे अपनी मां से मिलनी चाहिए थी उसे वह आरती में तलाश रहा था लेकिन इस बात का एहसास न तो आरती को था और न ही राघव को क्योंकि, इन दोनों के जीवन में 'रिक्तता' , 'अभाव' या 'कमी' के लिए कोई जगह नहीं थी. गोपाल का जीवन मां के वात्सल्य से लेकर पिता के इलाज के लिए पैसों की कमी से जूझ रहा था.

पैसे और परिस्थितियां संबंधों को निर्धारित भले ही न करते हों लेकिन उसे प्रभावित जरुर करते हैं. जबकि इंसान की परिस्थिति को निर्धारित करने में पैसे की भूमिका हमेशा ही अहम होती है.

एक 'ट्विस्ट' जो बदल देता है गोपाल का जीवन

आरती अपना तन और मन गोपाल को सौंप देती है लेकिन, फिर भी उसे तब तक अपनाने से डरती है जब तक कि वो भी बड़ा आदमी नहीं बन जाता. गरीब और अनाथ गोपाल जो 5000 रूपए की नौकरी के लिए खाक छान रहा होता है अचानक एक दिन एक यूनिवर्सिटी का डायरेक्टर बन जाता है.

चेतन भगत ने गोपाल के जरिए तेजी से उभर रहे निजी शिक्षण संस्थाओं की असलियत को खोलने का प्रयास किया है. हालांकि ये सब चल रहा है इसका अंदाजा हम सबको है.

भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद पर खबरिया चैनलों पर होने वाली ब्रेक से भरपूर बहस की झलकी सुनने से अच्छा है कि इस उपन्यास को पढ़ा जाए. अब अगर इस उपन्यास पर किसी खबरिया चैनल पर बहस हो तो उसकी हेडलाइन शायद ये भी हो सकती है ' खबरिया चैनलों से चेतन भगत की टक्कर!'

3 comments:

कौशलेन्द्र said...

acchi kitab aur accha prayash...

Gagan Gurjar "Saarang" said...

अच्छी अभिव्यक्ति....लेकिन आजकल के परिवेश में पैसे और परिस्थितियों से ही संबंधों का निर्धारण हो रहा है

niranjan dubey said...

Shaandaar... Lagta hai padhni padegi ye book...