Saturday, 23 January 2010

ये दौर बहुत मुश्किल है मगर ...

ये दौर बहुत मुश्किल है मगर
न जाने क्यूँ इसे सहता हूँ,
मेरे साथ कई रहबर हैं मगर
उन पर नहीं होता कोई असर।

मैं काहिल हूं, वो मेहनतकश
मैं हर काम में जान लड़ाता हूं,
वो जाम लड़ा कर कहते हैं...
तू काम बहुत करता है मगर, हम गधों से दूर ही रहते हैं।

वो कमजोरों पर हँसते हैं, उन्हें पिछड़ा कहते रहते हैं
ये देख के पीड़ा होती है कि 'साहब' भी उन्हीं की सुनते हैं,
ये खेल तमाशेबाजी का, मैं सीख भी लूं तो किसके लिए
हारुंगा तो अकेला रोउंगा, मैं जीता तो वो सब रोएंगे।

रोते को हँसाना चाहता था, गिरते को उठाना चाहता था
जो सबसे पीछे था उसको, मैं आगे लाना चाहता था
पर.. जो आगे हैं वो कहते हैं,
ये काम है नेता-मसीहा का, और खुद रिश्वत पर जीते हैं। 

अब सोचता हूँ, पिछड़ा किसको कहूँ
जो पीछे हैं या नीचे (नीच) हैं,
ये दौर बहुत मुश्किल है क्योंकि, यहां आगे वाला पिछड़ा है
जो पीछे है वो बढ़िया है, जो आगे है वो घटिया है।

संजीव श्रीवास्तव

2 comments:

अफ़लातून said...

आपको और विकास जुत्शी को इस ब्लॉग के लिए बधाई और शुभ कामनाएं ।
’converjent' किस्म के शब्द के हिज्जे ठीक कर लें । पोस्ट्स भी छापने के पहले खुद पढ़ लें।
टिप्पणियों के लिए word verification हटा लीजिए , लोग इसे झंझट-सा मानते हैं }। आपके ब्लॉग को ब्लॉगवाणी के लिए भेज रहा हूं ताकि आपकी हर नई पोस्ट की फ़ीड व्यापक पाठक समुदाय ्के समक्ष आती रहे ।

Amitraghat said...

शानदार लिखा है यथार्थ लेखन इसे कह्ते हैं ।
प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com