Wednesday 29 August 2018

गुझिया की याद में

ढोल-नगाड़ों की तेज आवाज से अचानक उसकी नींद टूट गई। चादर से मुंह निकाल उसने घड़ी देखने की कोशिश की। साढ़े ग्यारह बज रहे थे। उसने सोचा: बाहर निकलने का भी क्या फायदा, चाय-सिगरेट तो मिलेगी नहीं आज।

मोबाइल पर होली मुबारक वाले नोटिफिकेशन की बाढ़ आई हुई थी। उसने किसी को जवाब नहीं दिया। बिस्तर से उठ जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो चटख धूप पूरे कमरे में फैल गई। आंख मिझते हुए बालकनी की ओर बढ़ा ही था कि उसका पांव फिसल गया। नीचे देखा तो पूरी फर्श गीली थी। तभी पानी से भरा एक बड़ा सा गुब्बारा उसके पांव के पास छपाक से गिरा।

गुब्बारे में रंग नहीं था, सिर्फ पानी। सामने वाले घर में दो बच्चे गुब्बारों से भरी बाल्टी लिए ये करतब कर रहे थे। उसकी नजर पड़ते ही बच्चे थोड़ा सहम गए। बालकनी में खड़ा वह काफी देर तक गली में लोगों के झुंड और बच्चों की टोली पर पानी, रंगों और गुब्बारों की बौझार को देखता रहा।

उसे अचानक गुझिया की याद आ गई। सामने वाले बच्चों को खाता देख उसे भी जैसे भूख लग आई। मोबाइल की घंटी सुन वह अंदर आ गया।

- हैलो, आपको भी हैप्पी होली। इतना शोर क्यों हो रहा वहां?

- अरे, मत पूछो यार। कल तक तुम्हारी भाभी ने रो-रो कर बुरा हाल कर रखा था। जब तक बेटा घर में आ नहीं गया तब तक गुझिया का सामान लाने तक को तैयार नहीं थीं। अब सारे मिलकर गुझिया बना रहे हैं और एक-दूसरे को परेशान कर रहे हैं। खैर, तुम क्यों नहीं आए होली पर?

- अरे, आप जानते तो हैं... प्राइवेट नौकरी में छुट्टी का ही तो लफड़ा है।

- हां, सो तो है। और... खाना-वाना खा लिया? भगवान को थोड़ा अबीर-गुलाल चढ़ा देना। होली के दिन शुभ करना जरूरी होता है।

- हां, चढ़ा दिया है।

- अच्छा, रखता हूं फोन। पता नहीं किस-किस का मिस कॉल और मैसेज आ चुका है इतनी देर में। उन्हें भी निबटाना जरूरी है यार। चलो तुम होली एंन्जॉय करो। हैप्पी होली!

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