Wednesday, 29 August 2018

मैं उड़ नहीं पा रही हूं...

आज शाम से ही जय बहुत परेशान था। नेहा ने उससे साफ कह दिया था कि अब वो किसी भी कीमत पर उसके साथ नहीं रहेगी क्योंकि वो उसे जितना कमजोर समझ रहा है वो उतनी कमजोर नहीं है।
जय इस बात से और भी पेरशान हो गया कि इतने दिन साथ रहने के बाद भी वो उस लड़की को नहीं समझ पाया जिसे समझने का वो दावा करता फिरता था। वो सबसे ये कहता था कि मैं उसे जानता हूं, वो आसमान में उड़ना चाहती है... वगैरह-वगैरह। जबकि नेहा कह रही है कि अगर वो उड़ नहीं पा रही है तो ये सिर्फ उसकी कमजोरी है क्योंकि, वो खुद आगे नहीं बढ़ रही है।
नेहा ने कहा कि अगर उसने अच्छे से पढ़ाई की होती तो आज वो भी किसी ऐसी नौकरी में होती जिसमें उसे ज्यादा पैसे मिलते। उसे रोज नए-नए लोगों से मिलने का मौका मिलता। लेकिन जब उसने अच्छे से पढ़ाई ही नहीं की तो फिर वो समाज या अपने घरवालों को कैसे दोष दे सकती है?
आज भी जबकि मेरे पास सारी सुविधाएं मौजूद हैं मैं अपने मन मुताबिक बहुत सी चीजें नहीं कर पा रही हूं क्योंकि मैं उस हद तक नहीं जा पा रही हूं जिस हद तक मुझे जाना चाहिए। इसके लिए मैं समाज को कैसे जिम्मेदार ठहरा सकती हूं।
इतना कहते-कहते नेहा का गुस्सा और भी बढ़ गया और उसने तमतमाते हुए कहा- पिछले छह महीने से मैं गाड़ी चलाना सीखने की सोच रही हूं लेकिन, ये छोटा सा काम भी नहीं कर पा रही हूं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? अब मैं कहूं कि इसके लिए भी मेरे घर वाले ही जिम्मेदार हैं या समाज जिम्मेदार है....
जय- नेहा, देखो मैं कुछ और बात कह रहा हूं और तुम उसे कमजोरी और मजबूती पर ले जा रही हो। तुम कह रही हो कि नहीं मैं उतनी कमजोर नहीं हूं जितनी तुम सोचते हो। असल में मैं किसी दूसरी कमजोरी की बात कर रहा हूं, तुम इस बात को क्यों नहीं समझती?
नेहा- तुम किस कमजोरी की बात कर रहे हो फिर....
जय- मैं ये कह रहा हूं कि हमारे आस-पास ऐसा माहौल है जो हमें कमजोर बनाता है और हम इस बात को समझ नहीं पाते। तुम गाड़ी चलाना सिखना चाहो या वो पढ़ाई जो तुम करना चाहती थी नहीं कर पाई, इन दोनों बातों के लिए तुम खुद को जिम्मेदार मानती हो? लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता....
नेहा- अच्छा, तो आप क्या मानते हैं?
जय- मैं ये कह रहा हूं कि हमारे सिस्टम में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है जो व्यक्ति को समझ सके या उसके असली हुनर को पहचान सके। मुझे पता है कि मैं कोई अनोखी या नई बात नहीं कह रहा हूं लेकिन, इस बात को हम केवल सुनते हैं महसूस नहीं करते।
हम बड़ी आसानी से ये मान लेते हैं कि तुम जो पढ़ाई करना चाहती थी वो इसलिए नहीं कर पाई क्योंकि तुममे वो क्षमता ही नहीं थी। जबकि सच ये है कि हममें से ज्यादातर लोग किसी पढ़ाई को इसलिए चुनते हैं क्योंकि उसमें अच्छे करियर की संभावना होती है।
हमारे सिस्टम में कोई भी बच्चा कौन सी पढ़ाई करेगा वो इस बात से डिसाइड किया जाता है कि उसे दसवीं या बारहवीं में कितने अंक मिले थे। ठीक इसी तरह करियर का फैसला भी इस आधार पर किया जाता है कि उस प्रोफेशन का स्कोप कितना है। कितने का पैकेज मिलेगा वगैरह वगैरह...
मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि तुम अगर किसी काम को करने के लिए बिस्तर नहीं छोड़ पा रही हो या उसके लिए कुछ भी कर गुजरने का रिस्क नहीं ले पा रही हो तो उसका कारण बस इतना है कि वो तुम्हारा पैशन या जुनून है ही नहीं। उसे पाने के लिए तुममें पागलपन नहीं है। अगर आप आकर्षक करियर बनाने या ज्यादा पैसे कमाने का सपना देखते हैं और इसे न पाने के बावजूद रोज रात को आपको चैन की नींद आती है तो ये तय है कि वो आपका गोल नहीं है और ये बात हमें हमारा सिस्टम नहीं सिखाता...कमजोरी यहां है, समझी तुम।
ये सुनने के बाद नेहा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया लेकिन, वो इस बहस को और आगे नहीं बढ़ाना चाहती थी इसलिए वो चुप हो गई। जय ने भी सोचा इतनी रात को इसे और परेशान करना ठीक नहीं है, सो उसने भी कमरे की लाइट आॅफ कर दी।

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