Wednesday 29 August 2018

आखिर क्यों नहीं ले पाती हो तुम वो फैसला जो लेना चाहती हो!

आज सुबह से ही जय का मूड कुछ उखड़ा-उखड़ा सा था। एक दो बार नेहा ने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन जय ने उसे इग्नोर कर दिया। नेहा को समझ में आ गया कि कल बार जाने से मना करने वाली वाली बात से वो नाराज है।
पूरे दिन दोनों में कोई बात नहीं हुई, लेकिन शाम होते-होते जय का गुस्सा कुछ ठंडा हुआ तो उसने ही नेहा से पूछा- अच्छा एक बात बताओ, हमारे समाज में आज भी लड़कियां अपने बारे में फैसला लेने से इतना डरती क्यों हैं? 
मेरी एक भतीजी है जो गाने का शौक रखती है लेकिन, घरवाले हैं कि उसके इस फैलसे के सख्त खिलाफ हैं। मेरे भाई का कहना है कि ये गाने-वाने का काम लड़कियों के लिए ठीक नहीं है। 
मेरी भतीजी ने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया है क्योंकि वो मेरे भाई से बहुत डरती है। उसे लगता है अगर पापा गुस्सा हो गए तो घर से निकलना और कोंचिंग जाना भी बंद करवा देंगे।
इतना कहने के बाद जय कुछ सोचने लगा... कुछ देर रुक के उसने नेहा से सवाल किया- क्या तुमने भी जिंदगी के फैसले ऐसे ही किसी दबाव में लिए हैं? आखिर लडकियोंं को इतना एक्सपोजर और इतनी कानूनी ताकत मिलने के बावजूद उनमें कॉन्फिडेंस क्यों नहीं आता?
नेहा ये सब सुने जा रही थी और किसी खयाल में उलझी हुई सी भी थी। जय के सवाल करने के अगले एक मिनट बाद तक वो शांत ही रही...जय ने उससे फिर पूछा- आखिर कुछ बोलती क्यों नहीं तुम ?
नेहा- देखो, तुम्हे ये बात समझनी होगी कि हर लड़की इतनी मजबूत नहीं होती कि वो घर वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर फैसला ले सके। 
और हमारी परवरिश से ही बहुत हद तक ये निर्धारित हो जाता है कि हमें किस रास्ते पे जाना है। पढ़ाई से लेकर करियर और शादी तक का सब कुछ तो मां-बाप पहले से ही तय करके रखते हैं, फिर आपके लिए उसमें जगह ही कहां बचती है कोई फैसला खुद से लेने की।
ये बोलते-बोलते नेहा की आंखें कुछ नम हो गईं। लेकिन उसने तुरंत खुद को संभाला और बोली- अब मेरा ही ले लो... उसने मुझसे कहा था कि अगर तुम कहो तो मैं अपने घर वालों से बोलूं तुम्हारे घरवालों से बात करने को लेकिन, मैं इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि उससे हां कह पाती। मुझे लगा इससे मां-बाप की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी और मैं चुप रह गई।
जय को ये बात खटकी तो कि आखिर अचानक नेहा ये किसके बारे में बात करने लगी लेकिन, उसने उसे रोका नहीं और न ही इस बात को कुरेदने की कोशिश ही की। उसने नेहा को बोलने दिया।
नेहा- देखो, ऐसा कोई भी फैसला जो सिर्फ आपको पसंद है और घर वाले उसके साथ नहीं हैं तो उसे लेने में परेशानी आती ही है। ऐसा फैसला लेने के लिए आपमें इतना कॉन्फिडेंस होना चाहिए कि उसके गलत होने पर आप खुद को संभाल सकें क्योंकि, तब कोई भी आपके साथ नहीं होगा।
जय- और ये कॉन्फिडेंस क्यों नहीं होता लड़कियों में कि वो अकेले भी इस दुनिया का सामना कर सकती हैं। आखिर क्यों हर बार उन्हें किसी फैसले के लिए पिता, भाई, प्रेमी या पति का सहारा चाहिए?
नेहा- क्योंकि हमें शुरू से ही ये बताया जाता है कि लड़की एक खुली तिजोरी की तरह है जिसे अगर संभाल के न रखा जाए तो उसे कोई भी लूट सकता है।
इस बात पर जय जोर से हंस पड़ा और बोला- और शायद दुनिया में यही एक ऐसा अपराध है जिसमें इस तिजोरी को लूटने वाले अपराधी से ज्यादा शिकार होने वाले को सजा भुगतनी पड़ती है। और ये सजा कोई कानून या कोर्ट नहीं बल्कि, वही समाज देता है जो लड़की की इज्जत को उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बता कर उसे हमेशा के लिए मर्दों के आगे कमजोर बना देता है।
जय की इस बात का नेहा कोई जवाब नहीं देती और फिर से कुछ सोचने लगती है...

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