Wednesday, 29 August 2018

मेरे सारे बेस्ट फ्रेंड मुझे छोड़ गए

नेहा - दिल्ली आने के बाद जब पहली बार मैं क्लास में गई तो मुझे कुछ अजीब सा लगा। हमारे शहर में स्कूल हो या कॉलेज क्लास में एक तरफ लड़के बैठते हैं और दूसरी तरफ लड़कियां। लेकिन यहां तो लड़के-लड़कियां एक ही सीट पर बैठ रहे थे।

जय - तो तुम्हें एडजेस्ट करने में परेशानी नहीं हुई?

नेहा - नहीं... असल में जल्द ही मुझे समझ में आ गया कि इस सिस्टम से फायदा ज्यादा है। लड़के-लड़कियों की एक-दूसरे को लेकर फैंटेसी या कहो गलतफहमी को इस माहौल में पनपने का ज्यादा मौका ही नहीं मिलता।

जय - ऐसा कैसे कह सकती हो तुम?

नेहा - हां, क्योंकि मैं खुद बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा सोचती थी, लेकिन...

जय - लेकिन क्या...

नेहा - यही... कि सिगरेट या शराब पीने वाले लड़के अच्छे नहीं होते, ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए.... वगैरह-वगैरह। हालांकि, मैं अभी भी यही मानती हूं कि ये चीजें अच्छी नहीं होती लेकिन, धीरे-धीरे मुझे पता लगा कि ये चीजें सोशल गेदरिंग का एक बहाना भर हैं.... बस।

जय - लड़कों के बारे में और भी कोई भ्रम टूटा तुम्हारा.... यहां आने के बाद?

नेहा - बल्कि... लड़कियों के बारे में भी टूटा... (इतना कह के वो ज़ोर से हंस पड़ी)
मैंने देखा कि कुछ लड़कियों के ढेर सारे दोस्त लड़के भी थे। जब वो लड़कों के बीच होती तो बिल्कुल उनके ही स्टाइल में बात करती, सिगरेट पीती और कभी-कभी तो शराब भी। ऐसी लड़कियों के कॉन्टैक्ट्स अच्छे थे और वो बहुत कॉन्फिडेंट भी थीं।

जय - अच्छा, कॉलेज छूटने के बाद कोई ऐसी चीज है जो तुम अब भी मिस करती हो?

नेहा - हां, (उसके चेहरे पर अचानक से उदासी आ जाती है, बल्कि आंखों में थोड़ी नमी भी)... मेरे जो भी अच्छे दोस्त होते वो बाद में किसी और के बेस्ट फ्रेंड बन जाते थे। मेरी एक फ्रेंड जिसे मैं सबसे ज्यादा मानती थी वो भी किसी और की दोस्त बन गई और मुझसे दूर हो गई।

जय - ये भी तो हो सकता है कि तुम्हारे वो सारे दोस्त तो लगातार चलते रहे लेकिन, तुम रास्ते में ही कहीं रुक गई....आराम करने लगी?

नेहा ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया.... बस आसमान की ओर देखती रही और अचानक वहां से चली गई।

No comments: