Wednesday 29 August 2018

दोनों के बीच झगड़ा तो आम बात थी

पिछले डेढ़ सालों में बहुत कुछ हुआ। जय और नेहा के बीच।

दोनों के बीच झगड़ा तो आम बात हो गई थी। महीने के 15 दिन तो मुंह फुलाकर और बिना किसी बातचीत के ही बीतते। अक्सर बहुत छोटी-छोटी बात पर दोनों की बातचीत बंद हो जाती।

एक दिन तो जय सिर्फ इस बात पर गुस्सा हो गया कि नेहा ने उसके साथ चाय पीने जाने से मना कर दिया। उसने कई दिन तक नेहा से बात नहीं की।

जय का न बोलना नेहा को परेशान करता था लेकिन, वो कभी कहती न थी। हां, जय को मनाने की कोशिश वो जरूर करती।

आखिर, नेहा की किसी न किसी बात पर जय हंस पड़ता और दोनों की फिर से दोस्ती हो जाती।

बच्चों की तरह दोनों का रूठना-मनाना यूं ही चलता रहा और वक़्त गुजरता रहा।

इंसान ने अपने इर्द-गिर्द लोक-लाज, तहज़ीब, शर्म-हया, रिश्ते-नाते, पद-प्रतिष्ठा की ऐसी दीवारें खड़ी कर ली हैं जिनमें दरवाज़ा तो दूर, खिड़की बनाने की सोच भी उसे अपराधबोध से भर देती है।

शायद, ये अपराधबोध ही जय और नेहा के बीच एक कॉमन चीज है। पिछले डेढ़ सालों में इस अपराधबोध ने कई बार दोनों को दूर भी किया और पास आने को मजबूर भी।

कई पीढ़ियों ने सदियों से चले आ रहे जिस रिवाज़ के आगे मुंह तक नहीं खोला उसे दो इंसान चुनौती दे दें.... क्या इतनी हिम्मत करना ही किसी लड़की के मर्दानी होने का सबूत नहीं है। एक प्यारी सी लड़की के इस फौलादी इरादे ने ही जय को नेहा का मुरीद बना दिया है।

अब दोनों का मिलना-जुलना ना के बराबर रह गया है। इंसानी रिश्तों को रीति-रिवाज़ों की चुनौतियां मिलना कोई नई बात नहीं है।

जय उससे मिलना चाहता है लेकिन, नेहा टालने की हर कोशिश करती है।
फिर भी जय को अगली मुलाकात का इंतज़ार है...

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