कपड़े पहनने का नेहा का स्टाइल औरों से थोड़ा अलग है। हालांकि ज्यादातर मौकों पर राहुल ने उसे ट्रेडिशनल ड्रेस में ही देखा है। उसे सलवार कुर्ता पहनना शायद सबसे ज्यादा पसंद है। उस दिन उसने पीले रंग का काॅटन का सूट पहन रखा था। दुपट्टे का रंग भी पीला ही था। माथे पर हरे रंग की छोटी सी बिंदी भी लगा रखी थी।
पीले सूट में उसका गोरा रंग ऐसे चमक रहा था जैसे साफ उजले पानी की लहरों पर सूरज की रोशनी पड़ते ही उसकी चमक दोगुनी हो जाती है। उसे देखने के बाद कुछ देर तक तो राहुल को समझ में नहीं आया कि आखिर आज नेहा इतनी खुबसुरत क्यों लग रही है। उसका चेहरा ऐसे खिल रहा था जैसे उसमें से हजार वाट के कई बल्ब की रोशनी निकल रही हो। राहुल ये बात उससे कहना चाहता था लेकिन, समझ में नहीं आ रहा था कि वो कहे तो क्या कहे। पता नहीं ऐसा क्यूं होता है कि जब आप कुछ कहने के लिए सबसे ज्यादा बेताब होते हैं उसी वक्त शब्दों की सबसे ज्यादा कमी हो जाती है।
आते ही नेहा अपनी सीट पर गई और मोबाइल चेक करने लगी। राहुल लगातार उसे ही निहार रहा था। वो चीख-चीख कर कहना चाहता था कि आज दुनिया की हर खुबसूरत चीज तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई है, लेकिन चाह कर भी वो ऐसा कह नहीं सका। उसके मुंह से बस इतना ही निकला- आखिर सरकार पीले रंग के सूट को बैन क्यों नहीं कर देती? खासतौर से गोरी चमड़ी वालों को तो इसे पहनने ही नहंी देना चाहिए।
अपने वाट्सऐप में व्यस्त नेहा को ये बात समझ में आई या नहीं कहना मुश्किल है लेकिन, उसने राहुल से बस यूं ही पूछ दियाा- क्यूं... पीले सूट से तुम्हें क्या परेशानी है?
राहुल- मुझे कोई परेशानी नहीं है लेकिन, किसी को भी परेशानी हो सकती है।
राहुल से सवाल करते हुए नेहा की आखें ऐस चमकी रहीं थीं, जैसे वो कुछ कह देना चाहती हैं। उसके होंठ भी हिल रहे थे लेकिन, वहां से कोई शब्द नहीं निकल रहे थे। पता नहीं ये उसके आंखों और होठों की शैतानी थी या कुछ और लेकिन, राहुल इनके जादू में आज पूरी तरह कैद था।
राहुल का मन कर रहा था कि उसे कहीं घुमाने ले जाए लेकिन, उसे पता था कि ये नहीं हो सकता। फिर भी वो कुछ वक्त नेहा के साथ बिताना चाहता था। उसने चाय के लिए पूछा तो नेहा ने अनमने मन से जवाब दिया- अरे....ये कौन सा वक्त है चाय पीने का। ठीक है... तुम्हें पीनी है तो जाओ, मुझे कोई शौक नहीं है।
राहुल नेहा के नजदीक चला गया और धीमी आवाज में कहा- प्लीज, चलो ना.... दस मिनट में वापस आ जाएंगे।
नेहा अपने मोबाइल में लगी रही और बिना कुछ बोले इनकार करते हुए उसने गर्दन हिला दी। राहुल फिर भी नहीं माना और उसने नेहा के हाथ से मोबाइल छीनने की कोशिश की। दोनों में थोड़ी छीना-झपटी भी हुई। नेहा ने राहुल से अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से में कहा- क्या है... कोई जबरदस्ती है क्या?
राहुल उसके और नजदीक चला गया। उसने फिर कहा- प्लीज चलो न... बस दस मिनट की तो बात है। फिर आ जाना और करती रहना दिन भर अपना काम।
अब तक नेहा समझ चुकी थी कि इनकार करने से कोई फायदा नहीं है। उसने कहा- अच्छा दस मिनट सब्र करो। मुझे एक मेल करने दो, फिर चलती हूं।
काम निपटाने के बाद नेहा ने गुस्से में राहुल को देखा और ताना मारने के अंदाज में बोली- चलिए, चाय पीने....नहीं तो आप बीमार पड़ जाएंगे अभी।
नेहा का गुस्सा देख राहुल को समझ में नहीं आ रहा था कि उससे क्या कहे और कैसे बात करे। इस सोच में कुछ दूर तक दोनों बिना कुछ बोले ही चलते रहे। आखिर राहुल ने ही चुप्पी तोड़ी और बोला- अच्छा तुम्हें क्या लगता है... लड़कियां इतना डरती क्यूं हैं लड़को पर भरोसा करने से?
नेहा- अब किसी के चेहरे पर तो लिखा नहीं होता कि वो क्या है और उसके दिमाग में क्या चल रहा है। और सच ये है कि लड़कियां समझ जाती हैं कि कोई उन्हें किस निगाह से देख रहा है या लड़की को टच करने का उसका मकसद क्या है?
राहुल को ये बात थोड़ी बुरी लगी लेकिन, वो जानना चाहता था कि नेहा के दिमाग में क्या चल रहा है। उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा- अच्छा, मैं एक बात कहूं।
नेहा- हां...
राहुल- क्या ऐसा नहीं होता कि जब हमें कोई बहुत प्यारा या अच्छा लगता है तो हम उसे चूम लेना चाहते हैं या उसे बांहों में भरना चाहते हैं। कई बार भावनाओं को सिर्फ शब्दों से बयां करना मुश्किल हो जाता है या शायद शब्दों की अपनी सीमा होती है इसलिए जब वो कम पड़ने लगते हैं तो इंसान की आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं या सीने से लग जाने या लगा लेने का मन करता है?
नेहा- हां, हो सकता है... लेकिन इसका फैसला कैसे होगा कि किसी की भावना क्या है?
राहुल- अच्छा, एक चीज तुम्हें अजीब नहीं लगती कि पश्चिमी देशों में किसी से मिलते ही उसे गले लगाने और किस करने की प्रथा है। तुम्हें नहंी लगता कि अभिवादन का ये तरीका एक छटके में ही आपको ये एहसास करा देता है कि अगले की आपके प्रति क्या भावना है?
नेहा ने इस बात को थोड़ा गंभीरता से लिया। उसे लगा इस बात को आगे बढ़ाया जाना चाहिए- हां, हमारे यहां तो ठीक इसके उल्टा है। अगर आप नजदीकी रिश्ते में भी कुछ ज्यादा हंसी-ठिठोली करने लगे और थोड़ा नजदीक चले गए तो तुरंत ही डांट लग जाती है कि इतना चिपक-चिपक के बतियाने की क्या जरूरत थी उससे?
राहुल- तुम्हें नहीं लगता कि शायद इसी वजह से हमारी बहुत सी भावनाएं सही होते हुए भी व्यक्त नहंी हो पातीं और आगे चलकर वो गलत दिशा में चली जाती हैं?
नेहा थोड़ा सोच में पड़ गई। कुछ सोचने के बाद उसने कहा- हां, शायद ऐसा होता हो लेकिन ऐसा होगा ही ये कहना थोड़ा मुश्किल है...
राहुल- पता नहीं, लेकिन... इंसान अगर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों का कम इस्तेमाल करे तो शायद अविश्वास, डर और कुंठाओं से उसे मुक्त करना ज्यादा आसान होगा। शायद नैतिक शिक्षा की किताबें पढ़ाने की बजाए ये तरीका किसी को ज्यादा मानवीय बना सकता है।
नेहा- हां, शायद तुम्हारी बात सही हो सकती है लेकिन हर इंसान का मानसिक स्तर एक जैसा नहीं होता... और सच तो ये है कि इस मानसिकता को बदलने की ही ज्यादा जरूरत है।
जब नेहा ये बोल रही थी तो राहुल एक टक उसे देख रहा था। वो अब और भी खुबसुरत दिखने लगी थी... शायद इतनी खुबसुरत कि राहुल उसे शब्दों में बयां नहंी कर सकता था। उससे रहा नहीं गया और उसने नेहा के बाएं बाजू पर हल्के से दो मुक्के मारे और कहा- कभी-कभी तुम बहुत समझदारी की बात करने लगती हो। लेकिन जिस दिन पीला ड्रेस पहना करो उस दिन ऐसा मत किया करो, प्लीज....
इतना कहते-कहते राहुल ने फिर से नेहा के बाजू पर मुक्का मारने की कोशिश की। नेहा ने खुद को बचाते हुए कहा- बिहेव योर सेल्फ...
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