Wednesday 29 August 2018

न जाने क्यों अगले स्टेशन पर वो मेरा इंतजार करती रही...

राहुल को अपना असाइनमेंट दो दिन में जमा करना था। उसने नेहा से अपने साथ चलने की जिद की। नेहा ने साफ मना कर दिया। उसने कहा- असाइनमेंट तुम्हारा है, मैं क्यों जाउं तुम्हारे साथ।
असल में वो राहुल को इग्नोर करने की कोशिश कर रही थी लेकिन, वो लगातार नेहा से चलने की जिद कर रहा था। पता नहीं क्यों पर, कुछ सोचने के बाद नेहा ने हामी भर दी।
अगले दिन दोपहर में मेट्रो से जाने का फिक्स हुआ। वर्ल्ड फूड फेस्टिवल का आखिरी दिन होने के कारण दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में उस दिन काफी भीड़ थी। नेहा को वहां का क्राउड पसंद आया। देश-विदेश से आए लोगों का जमघट और दुनिया भर के अजीबो-गरीब खान-पान, उनकी सजावट और खुशबू ने माहौल को किसी त्योहार सा बना दिया था। स्टेडियम में घुसते ही राहुल ने आयोजक से बात की और अपने काम में लग गया। नेहा उसके पीछे-पीेछे चलती रही। कई स्टाॅल से गुजरने के बाद राहुल ने नेहा से कहा कि जब वो किसी से बात कर रहा हो तो उसकी कुछ तस्वीरें खींच ले ताकि, असाइनमेंट में उनका इस्तेमाल किया जा सके।
यहां आते वक्त दोनों ने सोचा था कि घंटे दो घंटे में काम निपटा कर निकल जाएंगे लेकिन, काम के बीच कब पूरा दिन निकल गया पता ही नहीं चला।
पांच बजे के करीब नेहा ने राहुल को इशारे में बताया कि उसे देर हो रही है। राहुल को भी तभी एहसास हुआ कि शाम होने वाली है। उसने जल्दी-जल्दी काम निपटाया और छह बजे के करीब दोनों वहां से चल दिए। स्टेडियम से चंद कदमों की दूरी पर ही जवाहर लाल नेहरू मेट्रो स्टेशन है। दिन भर स्टेडियम के चक्कर लगाते हुए नेहा थक गई थी, उसे तेज प्यास लग रही थी। उसने राहुल से एक बोतल पानी खरीदने को कहा। पानी पीते हुए जैसे ही दोनों मेट्रो स्टेशन में पहुंचे, राहुल प्लेटपफाॅर्म के लिए जाने वाली सीढ़ियों पर बैठ गया। तब तक नेहा आगे निकल गई थी। उसने इशारा किया कि ट्रेन आ गई है जल्दी नीचे आओ। राहुल ने इशारे में ही नेहा से पांच मिनट रुक जाने को कहा। असल में राहुल भी चलते-चलते थक गया था। नेहा को घर जाने की जल्दी तो थी लेकिन, उसने ट्रेन छोड़ दी और आकर राहुल के बगल में बैठ गई।
नेहा- अब बैठो क्यों हो यहां, मुझे देर हो रही है।
राहुल- अरे बाबा, दस मिनट तो बैठ सकती हो ना। अब घर ही तो जाना है तुम्हें, ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो लेट हो जाओगी।
नेहा ने कुछ जवाब नहीं दिया और चुपचाप बैठी रही। इस बीच कई ट्रेनें निकल जाने के बाद नेहा ने राहुल से कहा- देखो अगर अगली ट्रेन से तुम नहीं चले तो मैं निकल जाउंगी।
नेहा की बात को राहुल ने अनसुना कर दिया। ट्रेन आने पर जैसे ही नेहा चलने के लिए उठी, राहुल ने उसका बैग पकड़ लिया। नेहा ने बैग छुड़ाने की कोशिश की लेकिन राहुल ने उसे जाने नहीं दिया। नेहा को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर राहुल ऐसा क्यों कर रहा है। बार-बार बैग पकड़ के रोकने और नेहा की जाने की जिद अगले दस-पंद्रह मिनट तक चलती रही। इस दौरान कई ट्रेनें निकल गईं। प्लेटफाॅर्म पर खड़े लोग भी अब इन दोनों की ओर देखने लगे थे। अब तक नेहा का पारा चढ़ चुका था। उसने गुस्से भरी आंख से राहुल की ओर देखा और कहा- देखो, अगर इस बार तुमने मुझे रोकने की कोशिश की तो मैं बैग यहीं छोड़ दूंगी।
नेहा के गुस्से को राहुल ने भांप लिया। उसने नेहा का बैग छोड़ दिया। इस बार मेट्रो का दरवाजा खुलते ही नेहा झट से चढ़ गई लेकिन, जब तक राहुल भीड़ को ढकेलता हुआ अंदर जाता दरवाजा बंद हो गया। ये देख कर नेहा को जोर की हंसी आ गई। उसने बंद होते दरवाजे के पीछे से राहुल को चिढ़ाते हुए बाय का इशारा किया। दरवाजा बंद हुआ और मेट्रो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। नेहा की बोगी राहुल से दूर खिसकती हुई उसकी आंखों से ओझल हो गई।
राहुल कुछ मिनट तक प्लेटफाॅर्म पर गुमसुम सा खड़ा रहा। फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया और उसने तुरंत जेब से मोबाइल निकाला और नेहा को फोन लगा दिया। फोन उठते ही उसने कहा- अगले स्टेशन पर उतर जाना, मैं पीछे वाली मेट्रो से आ रहा हूं।
उधर से नेहा ने कहा- ठीक है...
आमतौर पर एक से दूसरे मेट्रो स्टेशन की दूरी तीन से चार मिनट की होती है, लेकिन राहुल को ऐसा लगा जैसे जानबूझकर इन दो स्टेशनों की दूरी को आज अचानक बढ़ा कर कई घंटो का कर दिया गया है। अगले स्टेशन पर पहुंचते ही राहुल तेजी से बोगी से बाहर आया और चारों ओर देखने लगा। नेहा उसी बोगी के ठीक सामने खड़ी थी...

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