Wednesday, 29 August 2018

उसके स्माइली फेस पर आज गहरी गंभीरता थी

पिछले कुछ दिनों से जय और नेहा के बीच राहुल आ गया था। नेहा लगातार उसके किस्से सुनाए जा रही थी और जय उन्हें सुनता जा रहा था। उसने महसूस किया कि नेहा की रूह के किसी कोने में राहुल ठहर गया था। तमाम घटनाएं जिनका वो जिक्र कर रही थी, बीते काफी अरसा गुजर गया था... लेकिन जब वो ये सब सुनाती तो लगता जैसे वो आज भी उन्हें जी रही है।
लेकिन आज सुबह से वो शांत थी। हमेशा खिले रहने वाले उसके स्माइली फेस पर आज गहरी गंभीरता पसरी हुई थी। जय ने समझ लिया कि कुछ तो गड़बड़ है। पता नहीं क्यूं लेकिन, जय को नेहा का ये अवतार अच्छा लग रहा था। वो नेहा की एक फोटो खींच लेना चाहता था। ताकि बाद में इसे दिखाते हुए कह सके- देखो, तुम्हारे इस रूप में जो आकर्षण है उसे दिखाने वाला कोई आइना अब तक नहीं बना है।
फिर भी जय ये जानना चाहता था कि नेहा के मन में आखिर चल क्या रहा है। उसकी चुप्पी तोड़ने के लिए जय ने एक सवाल उसकी ओर उछाल दिया- क्या जीवन में कुछ अधूरा रह जाने या उसके छूट जाने का अफसोस नहीं होना चाहिए? तुमने जेएनयू घूमने के दौरान राहुल से यही बात तो कही थी, ‘कुछ और हो न हो... हमें पढ़ाई तो अच्छी जगह से ही करनी चाहिए।‘ क्या तुम्हें इस बात का अफसोस नहीं है?
सवाल करने के बाद जय कुछ देर चुप रहा। वो जानना चाहता था कि नेहा इस बात से कितना सहमत है लेकिन, उसने कोई जवाब नहीं दिया। वो पहले की तरह ही शांत और गंभीर मुद्रा में अपनी जगह बैठी रही। उसके चेहरे के भाव तक नहीं बदले।
जय ने उसे और कुरेदने की कोशिश की- पता नहीं क्यों... लोग ये मानते हैं कि जो छूट गया, जो बीत गया उस पर अफसोस करना गलत है। जबकि सच तो ये है कि जिंदगी की असल सीख उस छूट जाने में ही छिपी हुई है। चलते-चलते अगर हम किसी गलत रास्ते पर आ गए हैं और सही रास्ता पीछे छूट गया है तो क्या हमें पीेछे नहीं जाना चाहिए। गतल रास्ते पर ही जिंदगी भर चलते रहने से तो अच्छा है कि हम थोड़ा पीछे चले जाएं और सही रास्ते को पकड़ लें।
अफसोस करने वाली बात नेहा को हजम नहीं हुई। राहुल ने जब इस बात पर ज्यादा जोर दिया तो नेहा अपनी कुर्सी से उठी और कमरे के कोने में रखे मनीप्लांट के पौधे के पास खड़ी हो उसकी पत्तियों से धूल साफ करने लगी और बोली- लेकिन, इसे अफसोस करना कैसे कह सकते हैं। जरूरी तो नहीं कि आप जिंदगी में जो कुछ सोचें वो सब आपके साथ हो ही जाए। कुछ न कुछ तो हर किसी की जिंदगी में होने से रह ही जाता है।
जय को अच्छा लगा कि नेहा इस बातचीत को आगे बढ़ाना चाहती है। जय अपनी जगह से उठा और एक कुर्सी ले जाकर नेहा के बगल में रख दी। नेहा को बैठने का इशारा कर वो खुद बगल में ही खड़ा हो गया।
नेहा कुर्सी पर बैठ गई तो जय ने कहा- हां, शब्दों का मेरा चुनाव गलत हो सकता है लेकिन, भाव ये है कि जब भी जिंदगी में चुनाव करने का वक्त आता है तो हम मजबूती से खड़े क्यों नहीं हो पाते? ऐसा तो नहीं था कि अगर तुम घरवालों का थोड़ा विरोध करती और थोड़ा सा धैर्य रखती तो तुम्हें वो नहीं मिलता जो तुम पाना चाहती थी।
नेहा इस बात का जवाब देना चाहती थी लेकिन, जय ने उसे रोकते हुए कहा- तुम अपनी बात कह लेना लेकिन, पहले मेरी बात पूरी हो जाने दो।
जय ने थोड़ा तेज आवाज में उत्तेजित होते हुए कहा- पता नहीं क्यूं... लेकिन मुझे ये लगता है कि तुम वो पा सकती थी और तुम्हारी जगह जिसे वो मिला, तुम उससे कहीं ज्यादा बेहतर उस मौके का इस्तेमाल कर सकती थी। हम मोटी फीस चुका कर किसी दोयम दर्जे के संस्थान में पढ़ना स्वीकार कर लेते हैं। मुझे समझ में नहीं आता कि इस तरह के समझौते लोग क्यूं कर लेते हैं। क्या ये हमारी कमजोरी नहीं है?
ये कहते-कहते जय थोड़ा भावुक सा हो गया। नेहा इस बात को समझ गई। उसने हंसते हुए कहा- अरे, तुम तो सेंटी हो गए। इतना टेंशन क्यूं ले लेते हो तुम? जिंदगी खत्म थोड़े ही हो गई है कि अब कुछ हो ही नहीं सकता।
नेहा की इस बात पर जय और भी भड़क गया। उसने गुस्से में कहा- बस... तुम लड़कियों की यही तो प्राॅब्लम है कि जब भी तुम्हारे साथ कुछ गलत होता है तो उसे या तो चुप होके सह लेती हो या आंसू बहा कर निकाल देती हो। उस गुस्से को पालती ही नहीं हो ताकि, वो आग बनके निकले और दूसरों को डरा दे। यही तो कारण है कि लड़कियों को हमेशा दबाया जा सका।
क्यों दुनिया के महान साइंटिस्ट से लेकर आर्टिस्ट या इनोवेशन के किसी भी फील्ड में महिलाओं का नाम रत्ती भर के बराबर है? क्योंकि इस जेंडर ने हमेशा अपनी भावनाओं को दबाने या छिपाने में ही अपनी बहादुरी समझी... कुछ व्यक्त होने ही नहीं दिया, उसे निकलने ही नहीं दिया कहीं।
अब तक जय का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। चेहरा तमतमा रहा था और आखों से जैसे आग निकल रही थी। वो और भी बहुत कुछ बोलना चाहता था लेकिन, अचानक चुप हो गया।
नेहा अपनी कुर्सी से उठी और उसकी आंखों में आंख डाल कर देखने लगी। नेहा के चेहरे पर जिस गंभीरता को देख कर जय ने ये बातचीत शुरू की थी वो अब गायब हो चुकी थी। जय को देखकर नेहा मुस्कुरा रही थी... उसकी आंखें फिर से चमकनें लगी थीं।

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