Wednesday, 29 August 2018

कुछ-कुछ बदलने लगी वो

पिछले दो दिन से जय को न जाने क्यों ये लग रहा था कि नेहा किसी बात पर उससे नाराज है। कहने को वो दोनों रोज वैसे ही मिल रहे थे जैसे मिलते थे लेकिन, अचानक कुछ बदल सा गया था दोनों के बीच। जय इस बात को लेकर बेचैन था लेकिन, नेहा को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था इन बातों का। किसी बात पर ओवर-एक्साइटेड हो जाना या बहुत खुश हो जाने की नेहा की आदत बहुत आम है जिसे उसके साथ काम करने वाले सभी जानते हैं। लेकिन, कौन सी बात उसे बुरी लगी या किस बात पर वो हर्ट हुई है, इसे समझना बहुत मुश्किल था।
इतने दिनों से साथ रहते-रहते जय उसकी इस आदत को थोड़ा-थोड़ा समझने लगा था। लोग भले ही कहें कि लड़कियों के नखरे बहुत होते हैं लेकिन, नेहा में नखरे जैसी कोई बात नहीं थी। अगर उसे कोई बात बुरी लगती तो रिऐक्ट करने की जगह वो उसे ऐसे इग्नोर कर देती जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं। जबकि, नेहा के उलट जय किस बात पर खुश है ये जानना मुश्किल होता। हाँ, कुछ भी बुरा लगने पर वो इतना आग-बबूला हो जाता कि फिर उसे ब्रह्मा भी नहीं संभाल सकते। नेहा ने कई बार उसे समझाया भी कि इतना टेंशन क्यों लेते हो। वो मजाक में जय से ये भी कहती कि टेंशन लेने से बाल जल्दी सफ़ेद हो जाते हैं और मोटापा भी बढ़ता है क्योंकि, जय इन दोनों समस्याओं से परेशान था।
हालांकि, नेहा की संगत का असर जय पर दिखने लगा था। अब वो अपने गुस्से पर काबू करना या उसे इग्नोर करना सीखने लगा था। उसे ये बात बुरी लगती कि नेहा किसी बात पर नाराज नहीं होती लेकिन, वो छोटी-छोटी बातों पर बच्चों की तरह मुंह फुला लेता है। लेकिन इस दौरान अजीब बात ये हुई कि पिछले कुछ दिनों से नेहा का स्वभाव बदलने लगा था। अक्सर वो जय को किसी न किसी बात पर डांट देती या उसे चुप करा देती। इसका असर ये हुआ कि अब जय कुछ भी बोलने से पहले ये जरूर सोचता कि कहीं ये बात उसे बुरी न लग जाए। पता नहीं क्यों, लेकिन अब वो नेहा से थोड़ा-थोड़ा डरने लगा था।
इसलिए आज दोपहर में जब दोनों चाय पी रहे थे तो जय ने पहले नेहा को टटोलने की कोशिश की कि कहीं वो नाराज तो नहीं है। इत्मीनान होने के बाद उसने कहा- पता है इंसान के साथ दिक्कत क्या है? वो हर जगह अपना दिमाग लगा देता है। लोगों को ये गलतफहमी रहती है कि गाड़ी में हैंडल या स्टेयरिंग ही सबसे जरूरी होती है क्योंकि, वही तय करती है कि गाड़ी किस दिशा में जाएगी जबकि, इंजन के बिना गाड़ी के किसी पार्ट का कोई महत्व नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे दिमाग के बिना तो शरीर जिंदा रह जाता है लेकिन, दिल के बंद होते ही इंसान को मरा हुआ घोषित कर दिया जाता है। अच्छा तुम बताओ, जब शरीर का इंजन (दिल) चलेगा ही नहीं तो हम दिशा देंगे किसे? लेकिन लोग न जानें क्यों कुछ अच्छा होने पर दिमाग की दाद देते हैं और बुरा होते ही इंसान को जज़्बाती कह दिया जाता है।
नेहा ने जय की इस बात का जवाब देने की बजाए पलट कर उससे सवाल कर दिया- तुम कहना क्या चाहते हो? सीधा-सीधा क्यों नहीं कहते, इतना घुमाते क्यों हो बात को?
जय- मैं कहां घुमा रहा हूँ। तुम्हीं कल से मुझे घुमाए जा रही हो। मैंने तुमसे कहा है कि दिमाग वहां लगाया करो जहां लगाना चाहिए। लेकिन तुम्हें तो ये दिखाना है कि तुम्हारे पास किसी से कम दिमाग थोड़े ही है।
ये सुनते ही नेहा के चेहरे पर तनाव पसर गया। उसने खीजते हुए कहा- देखो, मुझे नहीं पता तुम क्या सोचते हो लेकिन, तुम्हे कोई कहानी नहीं मिली तो उसके लिए मैं क्या करूँ। मुझे जो समझ में आया मैंने वो कहा... क्या कोई जबरदस्ती है कि मैं वही कहूं जो तुम्हें अच्छा लगे या तुम्हारे काम का हो। मैं इंसान हूँ, कोई मशीन नहीं।
नेहा की आवाज में आए इस तीखेपन को जय ने भांप लिया। वो समझ गया कि दिल और दिमाग वाली बात नेहा को बुरी लगी है। इससे पहले कि जय बात को संभालता नेहा ने इशारा कर दिया कि वो बातचीत को और आगे नहीं बढ़ाना चाहती। उसने जय से बोला- मैं निकल रही हूँ, मुझे कुछ काम है इसलिए जल्दी जाना होगा।
इतना कहते हुए वो सीढ़ियों की ओर बढ़ी और तेजी से नीचे उतर गई। जय कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, उसने जेब से सिगरेट निकाली, सुलगाया और कुछ सोचने लगा...

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