नेहा - तो क्या मैं पापा से बात करूं?
जय - किस बारे में?
नेहा - अरे शादी के बारे में और किस बारे में?
जय - कौन, वो तुम्हारे पापा के दोस्त की बेटी?
नेहा - हां, लड़की बहुत सुंदर है।
जय - देखो तुम जानती हो कि मुझे सुंदरता में कोई इंट्रेस्ट नहीं है। मुझे पता है मैं कैसा दिखता हूं। और फिर किसी खुबसूरत लड़की को मेरे जैसे कम शक्ल इंसान में इंट्रेस्ट क्यों होगा?
नेहा - आप एक बार मिल तो सकते हैं उससे।
जय - तुम्हें पता है कि शादी के इस सिस्टम का मैं समर्थक नहीं हूं। अच्छा, तुम बताओ तुम सबसे ज्यादा प्यार किससे करती हो।
नेहा - अपने मम्मी-पापा से।
जय - अच्छा, इन दोनों से तुम्हारा रिश्ता कैसे बना? क्या तुमने अपने मां-बाप को चुना था? मतलब, दुनिया का पहला रिश्ता ही नैचुरल है, स्वाभाविक है, प्राकृतिक है। इसमें चुनाव वाली तो कोई बात ही नहीं है। इसके बाद भाई-बहन, दोस्त-रिश्तेदार, ये सारे रिश्ते तो स्वाभाविक ढंग से ही बनते हैं। हम ये तो नहीं कहते कि वो दिखने में अच्छा नहीं है तो उसे मैं अपना भाई नहीं कहूंगी। फिर, ऐसा रिश्ता जिसे हम जिंदगी भर निभाने की कसम खाते हैं उसे शर्तों पर क्यों तय किया जाता है? क्यों ये शर्त रखी जाती है कि तुम्हारी शादी उसी शख्स से होगी जो तुम्हारे धर्म का हो, तुम्हारी ही जाति का हो, गोत्र एक ही हो.... इस रिश्ते को भी स्वाभाविक ढंग से क्यों नहीं बनने दिया जाता? क्यों इतनी दीवारें खड़ी की जाती हैं?
जय - अच्छा, इन दोनों से तुम्हारा रिश्ता कैसे बना? क्या तुमने अपने मां-बाप को चुना था? मतलब, दुनिया का पहला रिश्ता ही नैचुरल है, स्वाभाविक है, प्राकृतिक है। इसमें चुनाव वाली तो कोई बात ही नहीं है। इसके बाद भाई-बहन, दोस्त-रिश्तेदार, ये सारे रिश्ते तो स्वाभाविक ढंग से ही बनते हैं। हम ये तो नहीं कहते कि वो दिखने में अच्छा नहीं है तो उसे मैं अपना भाई नहीं कहूंगी। फिर, ऐसा रिश्ता जिसे हम जिंदगी भर निभाने की कसम खाते हैं उसे शर्तों पर क्यों तय किया जाता है? क्यों ये शर्त रखी जाती है कि तुम्हारी शादी उसी शख्स से होगी जो तुम्हारे धर्म का हो, तुम्हारी ही जाति का हो, गोत्र एक ही हो.... इस रिश्ते को भी स्वाभाविक ढंग से क्यों नहीं बनने दिया जाता? क्यों इतनी दीवारें खड़ी की जाती हैं?
नेहा - आपको किसी ने रोका है क्या ऐसा करने से? आपको करना है तो आप कीजिए अपने ढंग से। और अगर होना होता तो हो गया होता अब तक....
अगर आप कोशिश ही नहीं करेंगे तो कैसे होगा वैसा भी जैसा आप चाहते हैं। कोशिश तो कीजिए...किसी से मिलेंगे-जुलेंगे तभी तो होगा वैसा, जैसा आप चाहते हैं। लेकिन आपको तो किसी से मिलना ही नहीं है।
जय - देखो, मैं मिलने के खिलाफ नहीं हूं लेकिन, ये मिलना भी तो कंडीशनल ही हुआ न? हम किसी से इसलिए मिलेंगे क्योंकि एक-दूसरे में हम शादी की संभावना तलाशेंगे?
नेहा - तो फिर कैसे मिलेगी वो जिसे आप तलाश रहे हैं?
जय - किसने कहा कि मैं तलाश रहा हूं?
नेहा - तो फिर इतने बेचैन क्यों रहते हैं हर वक़्त ?
जय - तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैं इसलिए बेचैन हूं कि मुझे किसी की तलाश है? ये भी तो हो सकता है कि मेरी तलाश पूरी हो गई है इसलिए मेरी बेचैनी बढ़ गई है। क्या बेचैनी का ये कारण नहीं हो सकता कि जिसकी तलाश थी वो मिल गई है, लेकिन मैं उसे ये बता नहीं पा रहा हूं?
नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया...
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