Wednesday 29 August 2018

अपनी मां को इतना परेशान क्यों करते हो तुम...

जय और नेहा लंच के लिए तैयार ही हो रहे थे कि तभी जय का फोन बज उठा। स्क्रीन पर ‘घर‘ लिखा हुआ था। जय ने घर के लैंड लाइन का फोन नंबर इसी नाम से सेव किया हुआ है। ऐसा कम ही होता है कि जय को इस वक्त घर से फोन आए क्योंकि, उसने घर वालों को बोल रखा है कि दिन में उसे तभी फोन किया जाए जब कुछ बहुत अर्जेंट या जरूरी हो।
जय ने फोन उठाया। उधर लाइन पर जय के कोई रिश्तेदार थे, जय ने जैसे ही हैलो किया उन्होंने कहा- तुम्हारे मां की तबियत ठीक नहीं है, कल से ही तुम्हें बुला रही हैं।
इतना सुनते ही जय फोन लेकर नेहा से थोड़ा दूर चला गया। उसने कहा- मां से बात कराइए मेरी।
मां के हैलो बोलते ही जय की आंख भर आई। आवाज सुनते ही वो समझ गया कि उनकी तबियत काफी खराब है, वो ठीक से बोल भी नहीं पा रहीं थीं। जय उन्हें नमस्ते भी नहीं बोल पाया। उधर से मां ने ही कहा- बेटा अगर आॅफिस में कोई परेशानी न हो तो एकाध दिन के लिए आ जा, तुझे देखने का बहुत मन कर रहा है।
इतना कह कर मां ने फोन फिर से जय के रिश्तेदारर को पकड़ा दिया। शायद उन्हें रोना आ गया। जय ने फोन पर कहा- मैं आज रात ही चल रहा हूं। सुबह तक आ जाऊंगा।
फोन काटते हुए उसने नेहा को इशारा करके खाने के लिए बुलाया। खाने की मेज पर जय कुछ न कुछ बोलता ही रहता है लेकिन, आज शांत था। नेहा को लगा कुछ गड़बड़ है। कुछ देर बाद उसने ही पूछा- क्या हुआ, घर पर सब ठीक तो है न?
जय खाते-खाते ही बोला- नहीं... मां की तबियत ठीक नहीं है। मुझे आज ही घर निकलना पडे़गा।
नेहा- ठीक है... निकल जाओ।
जय- अरे यार, तुम तो देख ही रही हो आजकल यहां क्या-क्या पंगे फैले हुए हैं।
नेहा- तो क्या हुआ, तुम्हारे न जाने से वो पंगे खतम थोड़े ही हो जाएंगे... अभी जो जरूरी है वो करो।
जय- हां, मैं आज शाम को ही निकलता हूं।
खाना खत्म करने के बाद जय ने कहा- यार एक सिगरेट पीने का मन कर रहा है... चलोगी तुम?
नेहा- हां, चलो.... वैसे भी मेरे मना करने से कहां मानने वाले हो तुम।
नेहा के इस तंज पर जय अक्सर कुछ न कुछ बोलता ही था लेकिन, आज उसका मन कुछ उखड़ा-उखड़ा सा था। वो चुपचाप चलता रहा। नेहा भी बिना कुछ बोले उसके साथ चली जा रही थी।
चाय की दुकान पर पहुंच कर उसने एक सिगरेट ली और सुलगा ही रहा था कि नेहा ने पूछा- तुम्हारी मां तुम्हें देख कर काफी परेशानी होती होंगी.... क्यों?
जय ने आसमान में देखते हुए सिगरेट के कश को ऊपर की ओर छोड़ा। उसने तुरंत जवाब नहीं दिया, कुछ रुक कर बोला- तुम्हें पता है... मैं अपनी मां का सबसे दुलारा बेटा हूं। पिछले आठ साल से मैं घर से बाहर हूं और अकेले ही जिंदगी जी रहा हूं। मेरी मां को लगता है अकेले रहने में बहुत परेशानी होती है, खाना-पीना ठीक से नहीं हो पाता। नौकरी से लेकर घर तक का सारा काम अकेले ही करना पड़ता है.... और न जाने क्या-क्या।
इतना कहने के बाद जय फिर कुछ देर शांत ही रहा। नेहा जय के बाईं ओर खड़ी थी और हवा भी उसी ओर बह रही थी। जय के हाथ में सुलग रही सिगरेट का धुंआ नेहा के चेहरे से होता उसके नाक में जा रहा था। तंग होते हुए उसने कहा- यार, खतम करो इसे और फेंको जल्दी से.... पता नहीं क्या मजा मिलता है इसमें।
जय ने नेहा को अपनी दायीं ओर आने का इशारा किया और खुद उससे थोड़ा दूर हो गया। वो धीरे-धीरे कश लेता रहा और कुछ सोचता रहा। इस चुप्पी को तोड़ते हुए नेहा ने सवाल किया- तो अपनी मां को इतना परेशान क्यों करते हो तुम.... शादी क्यों नहीं कर लेते?
जय ये बात सुनकर हंस दिया। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो नेहा ने कहा- मैंने कुछ पूछा है तुमसे...
जय- तुम्हें पता है कि हमारे यहां शादियां कैसे होती हैं? बहुत सीधा सिस्टम है... लड़की वाले रिश्ता लेकर आते हैं या लड़के वालों को ही कहीं से पता चलता है। दोनों परिवारों में बातचीत होती है, फिर लड़का-लड़की एक-दूसरे को देखते हैं। कई बार ये पूरा प्राॅसेस दोहराया या तिहराया भी जाता है लेकिन, साल छह महीने के अंदर कहीं न कहीं बात फाइनल हो ही जाती है।
ये कहने के बाद जय रुक गया। उसने सिगरेट का आखिरी कश लिया और बाकी बचे हिस्से को जमीन पर डाल जूते से रगड़ दिया। इस बीच नेहा जय की ओर ऐसे देख रही थी जैसे वो कह रही हो कि अपनी बात पूरी कीजिए।
जय को हंसी आ गई। उसने बात जारी रखते हुए कहा- तुम अगर मुझे गौर से देखो तो ऐसी कोई खास कमी नहीं नजर आएगी मुझमें, जो बाहर से दिख जाए। शादी के समय तो यही देखा जाता है ना। पिछले कई साल से नौकरी में भी हूं और पढ़ा-लिखा भी ठीक-ठाक ही हूं.... अब बताओ, अगर मेरी शादी नहीं हो रही तो इसके लिए मैं कहां से जिम्मेदार हूं? और हां, इससे पहले कि तुम अपना एक्पर्ट कमेंट दो, एक बात और बता दूं... मैंने किसी से ये भी नहीं बोला है कि मैं शादी नहीं करुंगा। आई मीन... मैं स्ट्रेट हूं।
नेहा को जय की इस बात पर हंसी आ गई लेकिन, वो कुछ बोली नहीं। जय ने सिगरेट के पैसे दिए और दोनों वहां से चल दिए। कुछ दूर चलने के बाद जय ने कहा- यार, हम लोगों के यहां ये भी तो मान्यता है न... कि जोड़ियां तो भगवान बनाता है। फिर मेरी वाली कहां चली गई...
नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा- हां, लेकिन भगवान जो भी करता है अच्छे के लिए ही करता है...
जय ने हंसते हुए कहा- हां, अब ये मानने के सिवा कोई दूसरा आॅप्शन भी तो नहंी बचता.... आखिरी डेस्टिनी भी तो कोई चीज है.... क्यों?
दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए।

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