Wednesday 29 August 2018

इस कैरेक्टर को समझने में उसे मजा आने लगा था

पिछले दो दिनों से जय की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी, क्योंकि नेहा कुछ भी साफ-साफ नहीं कह रही थी। जय ने तय कर लिया कि आज वो जवाब लेकर ही मानेगा। दोनों दोपहर का खाना खा रहे थे कि तभी जय ने रोटी उठाते हुए जल्दी से कहा- खाने के बाद चाय पीने चल सकते हैं क्या?
नेहा खाने में व्यस्त थी। अचानक ये सवाल सुन उसे थोड़ा अजीब सा लगा लेकिन उसने कुछ जवाब नहीं दिया। वो खाने में लगी रही। इस दौरान जय की थाली में रोटियां खत्म हो गई थीं। उसने बिना पूछे नेहा की थाली में से एक रोटी उठा ली। नेहा ने गुस्से में उसकी ओर देखा और बोली- रोटी मांग भी सकते थे, मेरी थाली में से क्यों उठाई।
जय कुछ बोला नहीं, बस मुस्कुराते हुए रोटी खाता रहा। नेहा को भी हंसी आ गई। नेहा ने जय की ओर सब्जी का डब्बा बढ़ाते हुए कहा- बींस की सब्जी लाई हूं, चटपटी बनी है, चाहो तो टेस्ट कर सकते हो।
जय ने उसका टिफिन उठाया और पूरी सब्जी अपने प्लेट में उड़ेल ली। इससे पहले कि नेहा उसे रोकती टिफिन खाली हो चुका था। नेहा ने नाराज होने का सा चेहरा बनाया और बोली- तुम्हें कुछ समझ मंे भी आता है, अब मैं बाकी बची रोटी कैसे खाउंगी...सूखा?
जय- मुझे क्या पता कि तुम्हें और सब्जी चाहिए। अगर ऐसा था तो देते वक्त ही बता देती, फिर तुमने मुझे रोका क्यों नहीं।
नेहा- अच्छा, तो आपको अगर कोई कुछ आॅफर करे तो उसे पूरा चट कर जाइए। यही सीखा है आपने।
जय ने मुस्कुराते हुए कहा- क्या करू... गांव से हूं ना, शहर के तौर-तरीके सीखने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही।
जय की बात सुन नेहा को हंसी आ गई। अगले दो मिनट तक दोनों बिना कुछ बोले खाना खाते रहे। नेहा ने निगाह बचाते हुए जय की ओर देखा। वो खाने में तल्लीन था। नेहा फिर से खाने में ऐसे लग गई जैसे उसने जय को देखा ही नहीं। निवाला मुंह में डालते हुए उसने जय से पूछा- आज खाना खाने के बाद ही चाय क्यूं पीनी है?
जय- बस, यूं हीं... तुमसे कुछ बात करनी है।
नेहा- बात तो रोज ही होती है... आज ऐसा क्या अर्जेंट आ गया कि चाय पर चर्चा करने की नौबत आ गई?
जय- देखो अगर तुम्हें चलना है तो बताओ, अगर नहीं चलना चाहती तो मैं कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता तुम्हारे साथ।
नेहा- हम्म....ऐसा कुछ करने की कभी सोचना भी मत। अच्छा रोओ मत... चलते हैं। अब खाना निपटाओ पहले।
जय ने थोड़ी राहत महसूस की क्योंकि उसे लग नहीं रहा था कि नेहा इतनी आसानी से तैयार हो जाएगी। हाथ धुलने के बाद दोनों चाय पीने चल दिए।
रास्ते में जय ने कहा- अच्छा, ये बताओ.... राहुल में ऐसी क्या बात थी कि तुम उस पर इतना भरोसा करने लगी थी?
सवाल सुनने के बाद भी नेहा चलती ही रही... उसने कोई जवाब नहीं दिया। चाय की दुकान पर पहुंच कर जय ने दो कप चाय ली और दोनों नीम के पेड़ के नीचे खड़ी एक कार की टेक लेकर खड़े हो गए। तेज धूप और उमस के चलते गर्मी अपने चरम पर थी। नेहा का पूरा चेहरा लाल हो गया था। पसीने के चलते उसके सिर के बाल माथे पर चिपक रहे थे। चाय पीने का उसका बिल्कुल भी मन नहीं था, लेकिन पता नहीं क्यों मना नहीं कर पाई।
जय ने बात छेड़ते हुए कहा- अगर जवाब नहीं देना चाहती हो तो कह दो.... आगे से मैं कुछ पुछूंगा ही नहीं।
नेहा को इस बात पर गुस्सा आ गया। उसने कहा- तुम्हारे साथ यही प्राॅब्लम है। तुम्हें ये क्यों लगता है कि कोई बोल नहीं रहा है तो वो तुमसे नाराज ही है। क्या किसी के पास दुनिया में और कोई परेशानी नहीं हो सकतीा?
जय को नेहा की इस बात पर हंसी आ गई। उसने कहा- अच्छा, ये सब छोड़ो... तुम तो मेरे सवाल का जवाब दो अब...
नेहा जय की ओर देख कर कुछ सोचने लगी। कुछ मिनट सोचने के बाद उसने कहा- देखो, मैं ये दावा नहीं कर सकती कि मैं उसे पूरी तरह समझ ही गई थी लेकिन, हम दोनों के बीच शुरुआत कुछ अजीब थी।
शुरु में हम शायद ही कभी बात करते। वो हर समय किसी न किसी बात पर मुझे डांटने की फिराक में रहता। लेकिन अचानक पता नहीं क्या हुआ कि उसने मुझे डांटना बंद कर दिया। वो मुझसे बात करने के ज्यादा से ज्यादा मौके तलाशने लगा। पहले चाय से लेकर खाने जाने तक किसी बात के लिए वो मुझसे पूछता तक नहीं था लेकिन, अब जितनी बार भी बाहर जाता मुझे साथ चलने को कहता।
सच कहूं तो मैं थोड़ा डर गई थी। किसी भी लड़की को ऐसे मौके पर जो डर होता है वो मुझे भी था। मैं इतना परेशान रहने लगी कि मैंने कई लोगों से इस बारे में बात भी की और इसे समझने की कोशिश भी की, लेकिन मुझे कहीं से कोई सही जवाब नहीं मिला। या शायद मैं किसी को अपनी बात ठीक से समझाा ही नहीं पाई।
लेकिन मेरा ये डर धीरे-धीरे कम होने लगा, क्योंकि जब भी मैं उसके साथ कहीं गई, मुझे कुछ न कुछ सीखने को ही मिला। वो हमेशा ये कोशिश करता कि मैं ऐसे कामों में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लूं ताकि मेरा एक्सपोजर बढ़े और मैं करियर में कुछ बेहतर कर सकूं।
राहुल से शुरुआती मुलाकात की बात बताते वक्त नेहा के चेहरे पर जो तनाव था वो खत्म हो चुका था। तेज गर्मी के बावजूद अब उसके चेहरे पर सुकून की छांव ने अपना डेरा डाल लिया था। उसकी बातों से ऐसा लगा जैसे राहुल के व्यवहार में आए बदलाव से शुरु में वो भले ही परेशान थी, लेकिन जल्द ही उसे लगने लगा कि इसमें कुछ तो है जो औरों से अलग है। राहुल के इस अजीब से कैरेक्टर को समझने में नेहा को मजा आने लगा था।
नेहा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा- राहुल अक्सर अपनी बात मुझ पर थोपने की कोशिश करता, ये बात मुझे बुरी लगती लेकिन उसकी बातों को पूरी तरह से काटना या सिरे से खारिज करना आसान नहीं था। कुछ चीजों पर उसका नजरिया मुझे चैंका देता। जैसे, एक दिन उसने कहा- देखो ये जरूरी नहीं कि अगर उम्र में कोई तुमसे बड़ा है तो वो तुमसे ज्यादा समझदार ही होगा। ये बात रिश्तों पर भी लागू होती है, चाहे वो मां-बाप ही रिश्ता क्यों न हो।
ये बात कहते हुए नेहा के होटों को एक चंचल सी मुस्कुराहट छूकर चुपके से निकल गई। इसके बाद नेहा ने एक-एक कर उन घटनाओं को याद करना शुरु किया जिसने राहुल के बारे में उसकी सोच को बदला था...

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