श्याम बहुत दिनों से जय से कह रहा था, चल यार किसी दिन बीयर-शीयर पीते हैं लेकिन, जय उसे लगातार टाल रहा था। आखिर शनिवार को श्याम पीछे ही पड़ गया कि आज तो पार्टी होके ही रहेगी।
दोनों ने तय किया कि बार में चल के पी लेंगे और नेहा को भी साथ ले लेंगे। ये बात दोनों ने नेहा को नहीं बताई। लेकिन रास्ते में जब नेहा को ये बात पता लगी तो उसने जाने से इनकार कर दिया। घर से तीनों साथ ही निकले थे, लेकिन नेहा रास्ते में ही उतर गई। जय ने कई बार रिक्वेस्ट की, लेकिन वो नहीं मानी। नेहा को छोड़ने के बाद दोनों बार पहुंचे और अपनी-अपनी पसंद की ड्रिंक ऑर्डर कर के चखना खाने लगे।
कुछ देर बाद जब सुरूर चढ़ने लगा तो श्याम ने जय से पूछा- यार तू इसे इतनी लिफ्ट देता ही क्यों है? साला तूने इतनी मिन्नत की फिर भी वो यहां आने के लिए तैयार नहीं हुई।
जय- अरे नहीं यार, ऐसी बात नहीं है। देख, मैं उसे लिफ्ट-विफ्ट नहीं देता। जैसे तू मुझे अच्छा लगता है वैसे ही वो भी मुझे अच्छी लगती है... बस। तू भी तो कई बार मेरी बात नहीं मानता। तो इसका क्या मतलब है कि मैं तुझसे दोस्ती तोड़ दूं।
श्याम- अरे यार, लेकिन तुझे लगता नहीं कि वो बहुत ही फुद्दू टाइप लड़की है। ऐसा लगता है जैसे उसे बहुत बांध के रखा गया है और बस इतना कहा गया है कि दिल्ली में रहती है तो नौकरी कर ले, ज्यादा पैर पसारने की जरूरत नहीं है।
जय- हाँ, शायद तू ठीक कह रहा है। देख भाई, हर इंसान की जिंदगी में कुछ न कुछ डार्क होता ही है। मेरी और तेरी जिंदगी में भी कुछ न कुछ ऐसा है। अगर हम उसे जानते हैं तो अच्छी बात है, क्योंकि अगर जानते हैं तो कभी न कभी उससे छुटकारा भी मिल ही जाएगा। मुश्किल तब होती है जब हम अपनी ही कमजोरियों से अनजान होते हैं।
श्याम- यानि, उसकी कमजोरियों को जानने के बावजूद तू उसका साथ छोड़ेगा नहीं!
जय- मैंने किसी कमजोरी की वजह से उसका साथ नहीं पकड़ा है बल्कि, उसमें कुछ ऐसी ताकत देखी है जो अगर तुम देख सकते तो शायद तुम्हें भी वो अच्छी लगती। बल्कि, मैं तुममे भी ऐसा ही कुछ देखता हूं इसलिए ही तो तू मेरे इतने करीब है।
श्याम अब तक पूरी तरह टुन्न हो चुका था और बोलने की हालत में नहीं था। जय ने उसे किसी तरह कार में बिठाया और दोनों वहां से चल दिए
दोनों ने तय किया कि बार में चल के पी लेंगे और नेहा को भी साथ ले लेंगे। ये बात दोनों ने नेहा को नहीं बताई। लेकिन रास्ते में जब नेहा को ये बात पता लगी तो उसने जाने से इनकार कर दिया। घर से तीनों साथ ही निकले थे, लेकिन नेहा रास्ते में ही उतर गई। जय ने कई बार रिक्वेस्ट की, लेकिन वो नहीं मानी। नेहा को छोड़ने के बाद दोनों बार पहुंचे और अपनी-अपनी पसंद की ड्रिंक ऑर्डर कर के चखना खाने लगे।
कुछ देर बाद जब सुरूर चढ़ने लगा तो श्याम ने जय से पूछा- यार तू इसे इतनी लिफ्ट देता ही क्यों है? साला तूने इतनी मिन्नत की फिर भी वो यहां आने के लिए तैयार नहीं हुई।
जय- अरे नहीं यार, ऐसी बात नहीं है। देख, मैं उसे लिफ्ट-विफ्ट नहीं देता। जैसे तू मुझे अच्छा लगता है वैसे ही वो भी मुझे अच्छी लगती है... बस। तू भी तो कई बार मेरी बात नहीं मानता। तो इसका क्या मतलब है कि मैं तुझसे दोस्ती तोड़ दूं।
श्याम- अरे यार, लेकिन तुझे लगता नहीं कि वो बहुत ही फुद्दू टाइप लड़की है। ऐसा लगता है जैसे उसे बहुत बांध के रखा गया है और बस इतना कहा गया है कि दिल्ली में रहती है तो नौकरी कर ले, ज्यादा पैर पसारने की जरूरत नहीं है।
जय- हाँ, शायद तू ठीक कह रहा है। देख भाई, हर इंसान की जिंदगी में कुछ न कुछ डार्क होता ही है। मेरी और तेरी जिंदगी में भी कुछ न कुछ ऐसा है। अगर हम उसे जानते हैं तो अच्छी बात है, क्योंकि अगर जानते हैं तो कभी न कभी उससे छुटकारा भी मिल ही जाएगा। मुश्किल तब होती है जब हम अपनी ही कमजोरियों से अनजान होते हैं।
श्याम- यानि, उसकी कमजोरियों को जानने के बावजूद तू उसका साथ छोड़ेगा नहीं!
जय- मैंने किसी कमजोरी की वजह से उसका साथ नहीं पकड़ा है बल्कि, उसमें कुछ ऐसी ताकत देखी है जो अगर तुम देख सकते तो शायद तुम्हें भी वो अच्छी लगती। बल्कि, मैं तुममे भी ऐसा ही कुछ देखता हूं इसलिए ही तो तू मेरे इतने करीब है।
श्याम अब तक पूरी तरह टुन्न हो चुका था और बोलने की हालत में नहीं था। जय ने उसे किसी तरह कार में बिठाया और दोनों वहां से चल दिए
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