Wednesday 29 August 2018

मंज़िल पर पहुंचने वाले भी तो सफर के बारे में यही कहते हैं...

⁠⁠⁠बारिश के बाद की धूप जितनी साफ होती है उतनी ही तीखी भी लगती है। तीन-चार दिन से लगातार हो रही बरसात के बाद आज निकली तेज धूप ने एक झटके में ही फिर से गर्मी के साथ उमस पैदा कर दी। आसमान में बादलों के झुंड इधर-उधर घुमड़ने से बाज नहीं आ रहे थे लेकिन, सूरज भी आज हार मारने के मूड में नहीं था।
जय और श्रेय खाना खा कर कमरे में आए ही थे कि जय ने चाय पीने की इच्छा जाहिर की। धूप की हालत देखकर श्रेय ने साफ इनकार कर दिया।
जय फिर भी माना नहीं। उसने श्रेय की कमीज उठाकर उसके मूंह पर फेंकते हुए कहा- अबे, मर नहीं जाएगा धूप खाके तू। वैसे तो बड़ा गांव वाला बताता फिरता है सबको, अब क्या हुआ... घुस गई तेरी गंवई...
शर्ट का बटन बंद करते हुए श्रेय ने कहा- देख साले, मुझे पता है तू मानेगा नहीं बिना चाय पीये... मैं चल तो रहा हूं तेरे साथ लेकिन चाय नहीं पियूंगा, सिगरेट पिलाएगा तो बता?
जय- हां, चल पी लेना सिगरेट।
जय जिस भी इलाके में रहा वहां उसकी एक फिक्स चाय की दुकान जरूर होती थी। इसलिए इलाका छोड़ने के बाद उसे कोई और पहचाने या नहीं, चाय वाले शायद ही उसे भूल पाते होंगे। एक चाय वाले को तो उससे इतना लगाव हो गया कि मोहल्ला छोड़ने के बाद कई महीनों तक फोन करके जय से हाल-चाल पूछता था।
अपनी आदत के मुताबिक यहां भी उसने ऐसी ही एक दुकान ढूंढ ली थी। हां, ये अलग बात थी कि वो इस इलाके की सबसे घटिया चाय पिलाता था। असल में, जय को चाय के टेस्ट से ज्याद इस बात में दिलचस्पी होती कि दुकान में आराम से बैठने और कुछ घंटे गप्प करने की सुविधा है या नहीं। इस लिहाज से भाटिया टी स्टाॅल उसके लिए सबसे मुफीद जगह थी।
जय को आता देख दुकान के मालिक ने दूर से ही आवाज लगाई- अरे सर, आज इस टाइम कैसे आना हुआ। छुट्टी है क्या?
जय- अरे नहीं, भाटिया जी। छुट्टी तो नहीं है लेकिन आज गया नहीं काम पर... और सुनाइए, सब खैरियत तो?
भाटिया- माता रानी का आशीर्वाद है सर। दो चाय दूं?
जय- अरे नहीं, चाय तो मुझे पिलाइये। ये साहब तो सिगरेट लेंगे।
ये कहते हुए जय और श्रेय दुकान के अंदर चले गए। भाटिया की दुकान मोहल्ले के सबसे व्यस्त सड़क पर तिराहे के ठीक सामने थी। इस वजह से यहां हर समय चहल-पहल बनी रहती। जय ने चाय का प्याला लिया और अंदर लगी स्टूल पर बैठ गया। श्रेय खड़े-खड़े सिगरेट के कश मारता रहा और सड़क से गुजर रहे खूबसूरत चेहरों के साथ नजरों की वर्जिश करने लगा।
सिगरेट का कश छोड़ते हुए उसने कहा- जय... तुझे नहीं लगता चाय की दुकान के साथ अगर भाटिया जी गोल-गप्पे खिलाने लगें तो इनके यहां चाय पीने वालों की संख्या बढ़ जाएगी और इनकी आमदनी भी?
ये सुनते ही भाटिया हंस पड़ा। बोला- अरे भाई साब, कहां लफड़ों में फंसा रहे हैं... चाय से इतना मिल जाता है कि घर-परिवार आराम से चल जाता है। पांव पसारने के साथ परेशानी भी तो बढ़ती है सर, वो कौन झेलेगा।
श्रेय- हां, वो तो है भाटिया जी। वैसे भी परेशानी बढ़ाने से मिलता ही क्या है जिंदगी में... है के नहीं?
भाटिया- बिल्कुल भाई साब।
इन दोनों की बातचीत से बेखबर जय अपने मोबाइल में लगा हुआ था। श्रेय ने उसे आवाज लगाते हुए पूछा- क्या भाई साब, चलें अब... कि यहीं पूरा दिन बिताने का इरादा है।
जय ने कोई जवाब नहीं दिया। हाथ से इशारा करते हुए पांच मिनट रुकने को बोला। तब तक श्रेय उसके पास पहुंच गया और पालथी मार कर जय के बगल में बैठ गया।
दोपहर होने की वजह से चाय की दुकान पर इन दोनों के अलावा कोई और कस्टमर नहीं था। भाटिया भी अपनी कुर्सी पर बैठा ऊंघ रहा था।
श्रेय ने जय से पूछा- यार देख तेरे पास न तो प्रेमिका है और न पत्नी लेकिन, मेरे पास कम से कम एक चीज तो है और मुझे उसका ख्याल रखना पड़ता है। शादी जो की है। तो, मैं तो चला अपने घर.... तू रह अपनी इस चाय और भाटिया की दुनिया में।
जय ने मोबाइल बंद किया और श्रेय की ओर देखते हुए बोला- देख भाई, तू दुनिया का पहला मर्द तो है नहीं जिसके पास पत्नी है। न ही मैं दुनिया का अकेला ऐसा इंसान जिसके पास प्रेमिका या पत्नी में से कोई नहीं है। हम दोनों में से अनोखा तो कोई नहीं है....ये तो तू मानेगा, बोल हां या ना?
श्रेय- हां, चल मान लिया फिर...
जय- रही बात मेरे पास क्या है क्या नहीं ये तूझे कैसे पता... जब तक मैं ढ़िढोरा न पीटूं, उसके साथ सेल्फी लेकर मोबाइल में सेव न करूं, या फेसबुक प्रोफाइल में ये न लिखूं कि ‘आई एम इन लव‘ तब तक तू या तेरे जैसे दुनियादार ये मानेंगे नहीं कि मेरी जिंदगी में भी प्यार है... क्योंकि प्यार की तो यही परिभाषा है तेरी?
श्रेय- अच्छा चल मान लिया कि ये मेरी परिभाषा है, तो तेरी क्या है भाई... ये भी बता दे तू।
जय- मेरी कोई परिभाषा नहीं है। बस इतना समझ कि इंतजार में जिंदगी गुजारने का अपना मजा है। आखिर में कम से कम ये अफसोस तो नहीं रहेगा कि कुछ दिन और सब्र कर लिया होता... वैसे भी मंज़िल पर पहुंचने वाले यही कहते हैं कि असली ख़ुशी तो सफर में ही है।
इतना कहते हुए जय उठा और भाटिया को पैसे देते हुए श्रेय से बोला- जल्दी चल, तेरी जिम्मेदारी तेरा इंतज़ार कर होगी...

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