Wednesday 29 August 2018

यार बीवी ही तो है, प्रेमिका थोड़े ही है...

पिछले दो दिन से लगातार हो रही बारिश ने दिल्ली का मौसम खुशनुमा बना दिया था। भीषण गर्मी से मिली इस राहत का मजा लेने के लिए जय ने बालकनी में अपनी आराम कुर्सी और एक टेबल डाल दी थी। रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे। कुर्सी पर लगभग लेटे हुए जय ने सामने पड़ी टेबल पर अपने दोनों पैर टिका रखे थे। बारिश बंद हो चुकी थी और धीरे-धीरे बह रही ठंडी हवा का मजा लेते हुए जय आसमान को निहार रहा था। तभी डोर बेल बज उठी।
कुर्सी से उठने का उसका बिल्कुल मन नहीं कर रहा था। घंटी बजाने वाले से वो कह देना चाहता था कि भाई अभी चले जाओ, अभी मैं किसी और दुनिया में खोया हुआ हूं। कम से कम कुछ घंटे तो वहां बिता लेने दो। मगर दिल की बात को कानों से थोड़े ही सुना जा सकता है। इस बीच तीन-चार बार डोर बेल बजाई जा चुकी थी।
जय ने लेटे-लेटे ही आवाज लगाई- आ रहा हूं भाई, इतनी घंटी भी मत बजाओ कि पड़ोसी की रात भी खराब हो जाए।
जय ने किसी तरह खुद को आराम कुर्सी से निकाला और दरवाजा खोलने पहुंच गया। दरवाजे के उस पार उसके परम मित्र श्रेय सिंह खड़े थे। दरवाजा खुलते ही श्रेय ने कहा- अबे मर गया था क्या? साला पिछले दस मिनट से घंटी बजाए जा रहा हूं, कोई सुनने वाला ही नहीं है जैसे...
ये बड़बड़ाते हुए श्रेय बालकनी में पहुंच गया और आराम कुर्सी पर पसर गया। जय दरवाजा लगा कर सीधे किचन में चला गया। दो गिलास और पानी की बोतल लेकर वो भी बालकनी में आ गया। टेबल पर सामान रख कर उसने कमरे में से एक कुर्सी खिंची और श्रेय के बगल में ही बैठ गया।
श्रेय- क्या भाई, सुना है आजकल बड़ी राइटिंग-वाइटिंग कर रहा है तू। साले टाइम पास के लिए और काम नहीं मिला तुझे।
श्रेय अपनी बात कहते-कहते थोड़ा सीधा होकर बैठ गया और टेबल पर रखे दोनों गिलास में पानी भरने लगा। एक गिलास जय को बढ़ाने के बाद उसने पानी पीया और जय की ओर देखने लगा।
जय ने पानी का गिलास वैसे ही वापस टेबल पर रख दिया और सिगरेट जलाने लगा। सुलगती हुई सिगरेट उसने श्रेय की ओर बढ़ा दी।
श्रेय ने सिगरेट का कश छोड़ते हुए कहा- खैर, छोड़ तू ये फालतू की बातें। तुझे एक खुशखबरी सुनाता हूं... मेरा प्रमोशन हो गया है और सैलरी भी डबल हो गई है मेरी।
ये सुन के जय ने कुछ खास रिएक्शन नहीं दिया तो श्रेय को बुरा लगा। उसने कहा- साले, जल गया ना। लेकिन तू घबरा मत, तेरा भी कुछ कराता हूं मैं।
इस बीच जय कुर्सी से उठ कर बालकनी में टहलने लगा। हल्की-हल्की बूंदा-बांदी फिर से शुरू हो गई थी। जय अभी नौकरी और इस तरह की बातचीत के बिल्कुल मूड में नहीं था। वो चाह रहा था कि श्रेय कुछ और बात करे लेकिन, उसे तो आज अपने प्रमोशन की खुशी के आगे कुछ सूझ ही नहीं रहा था।
अपनी खुशी में मदमस्त श्रेय आराम कुर्सी छोड़ खड़ा हो गया और जय के साथ टहलने लगा। कुछ मिनट तक दोनों सिगरेट के कश मारते रहे और सामने वाली छत पर खड़ी उन लड़कियों को देखते रहे जो हल्की-हल्की हो रही बारिश का मजा ले रही थीं।
इस बीच श्रेय ने जय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- यार, पता है तूझे... मैं आज भी मुखर्जी नगर वाले उस घर को मिस करता हूं जिसमें तू, मैं और अमित रहते थे। साला छोटे से उस घर में सिर्फ अमित कमाता था और हफ्ते के आखिर में पार्टी का खर्चा भी बेचारा वही उठाता था। और पार्टी भी क्या... किसी दिन मटर पनीर तो किसी दिन मुर्गे की शामत। साला आज सब कुछ होने के बावजूद उन रातों को भूल नहीं पाता। देख ना... आज भी अपने प्रमोशन की असली खुशी मुझे तभी मिली जब तूझे ये बात बताई।
श्रेय ने जय को रोकते हुए पूछा- तू नहीं मिस करता उन दिनों को?
जय ने जवाब देने की बजाए श्रेय से ही सवाल पूछ दिया- अच्छा चाय पियेगा तू... मेरा तो बहुत मन कर रह है?
श्रेय- हां, पी लूंगा। तेरे साथ रहने वाला कभी चाय पीने से बच सका है, जो मैं बच जाऊंगा।
दोनों किचन की ओर चल दिए। जय के फ्लैट में दो कमरे थे और दोनों के बीच छोटी सीे लाॅबी और उसके ठीक सामने किचन। किचन के दरवाजे के सामने ही श्रेय कुर्सी डाल कर बैठ गया। जय ने चाय चढ़ा दी और प्लेट में बिस्कुट निकालने लगा।
श्रेय ने शिकायती अंदाज में जय से कहा- इतनी रात में घर से निकला तो भी पत्नी ताना देने से बाज नहीं आई। कहने लगी, चल दिए अपनी असली प्रेमिका के पास...
इतना कहते हुए श्रेय का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने दांत पीसते हुए कहा- साला पत्नियों को पता नहीं क्या खुन्नस रहती है अगर आप अपने दोस्तों के साथ टाइम पास करो तो।
जय ने चाय की प्याली श्रेय को पकड़ाते हुए कहा- क्यों नहीं परेशानी होगी उसे... आखिर तेरी बीवी है। उसका हक बनता है तुझ पर... और तू है कि अपनी खुशी बांटने के लिए यहां चला आया।
श्रेय अब तक गंभीर हो चुका था। उसने चाय खत्म कर प्याला टेबल पर रखा और गहरी सांस लेते हुए कहा, हां, यार बीवी ही तो है... प्रेमिका थोड़े ही है वो मेरी...
ये सुनते ही जय को लगा जैसे किसी ने उसे जोर से धक्का दिया हो। उसके प्याले से चाय छलक कर जमीन पर जा गिरी। जब तक जय खुद को संभालता श्रेय जा चुका था...

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