जय - अच्छा तुमने ये फैसला क्यों लिया कि तुम्हें दिल्ली में ही पढ़ाई करनी है। जो पढ़ाई तुम यहां कर रही थी उसे तो तुम अपने शहर में रहकर भी कर सकती थी।
नेहा - क्या करती, करना तो मैं एमबीए चाहती थी लेकिन, उस साल यूपीटीयू के किसी कॉलेज में मुझे एडमिशन नहीं मिला और घर वाले शादी का प्रेशर बढ़ाते जा रहे थे।
मैंने सोच रखा था कि ये चाहे जितना प्रेशर डालें जब तक मैं नौकरी नहीं कर लेती शादी नहीं करूंगी, लेकिन अब तो एमबीए होने से रहा और अगर घर में खाली बैठती तो दो-चार महीने में ही घर वाले शादी करा देते।
नौकरी पाने के सपने पर भी पानी फिरने वाला था और दूसरा कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। मैं किसी भी तरह यहां से निकलना चाहती थी। तभी एक दिन अखबार में मुझे दिल्ली के इस इंस्टीट्यूट के बारे में पता चला। बस मैंने अप्लाई कर दिया और किस्मत से एग्जाम भी पास कर गई। जैसे ही मुझे दिल्ली जाने का रास्ता मिला मैंने ठान लिया कि यहां तो एडमिशन लेना ही है चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
जय - तो क्या तुम्हारे घर वाले मान गए? एक छोटे शहर की लड़की को एकदम से इतने बड़े शहर में भेजने के लिए, वो भी अकेले?
नेहा - तुम्हे क्या लगता है इतना आसान था ये सब। लाख समझाने के बाद भी पापा ने साफ मना कर दिया। आखिर में मैंने ही उनसे कहा कि मैं अकेली नहीं रहूंगी। मामा तो दिल्ली में रहते ही हैं उन्हीं के यहां रह लूंगी। फिर भी पापा तैयार नहीं थे लेकिन, मम्मी ने उन्हें किसी तरह समझाया।
जय - फिर...
नेहा - फिर क्या... मुझे तो पता ही था कि ये कोर्स करके छोटी-मोटी नौकरी पाना मेरा मकसद नहीं है। मुझे लगा कि इस पढ़ाई से मेरी राइटिंग स्किल कुछ ठीक हो जाएगी और दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी करने का रास्ता भी खुल जाएगा।
लेकिन एडमिशन लेने के बाद एक नया ही लोचा सामने आया। पता चला कि जिस कॉलेज में एडमिशन लिया है वो तो हमारे स्कूल से भी गया-गुजरा है। सुबह एक बार कैंपस में घुसे तो शाम के पहले बाहर निकलना असंभव।
क्लास भी मिस नहीं कर सकते थे, क्योंकि एग्जाम में बैठने के लिए 75% अटेंडेंस जरूरी थी। सिविल की तैयारी वाले प्लान पर खतरा दिखने लगा। फिर भी मैंने तय किया कि शाम के वक्त सिविल की कोचिंग ज्वाइन कर लूंगी तो दोनों मैनेज हो जाएगा, लेकिन...
जय - लेकिन क्या...
नेहा - तुम तो जानते ही हो, किसी दूसरे के घर की लड़की को अपने घर में रखने में लोग कितना डरते हैं, चाहे वो कितने भी क्लोज रिलेशन में क्यों न हों। मेरे साथ भी वही हुआ।
यहां आते ही रोज-रोज ताने सुनने का सिलसिला शुरु हो गया। इसके बावजूद सुबह तो मैं किसी तरह कॉलेज पहुंच जाती लेकिन, सिविल की कोचिंग शाम को ही हो सकती थी। अब रोज वहां लाता ले जाता कौन? अकेले जाने की परमिशन मिलने से रही। सो, धरा रहा गया सबकुछ...
जय - लेकिन, तुम नौकरी के बाद ही शादी क्यों करना चाहती थी? ये काम तो शादी के बाद भी हो सकता था?
नेहा - हां, लेकिन मैं अपनी जरूरतों के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहती थी... बस इसलिए।
नेहा - क्या करती, करना तो मैं एमबीए चाहती थी लेकिन, उस साल यूपीटीयू के किसी कॉलेज में मुझे एडमिशन नहीं मिला और घर वाले शादी का प्रेशर बढ़ाते जा रहे थे।
मैंने सोच रखा था कि ये चाहे जितना प्रेशर डालें जब तक मैं नौकरी नहीं कर लेती शादी नहीं करूंगी, लेकिन अब तो एमबीए होने से रहा और अगर घर में खाली बैठती तो दो-चार महीने में ही घर वाले शादी करा देते।
नौकरी पाने के सपने पर भी पानी फिरने वाला था और दूसरा कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। मैं किसी भी तरह यहां से निकलना चाहती थी। तभी एक दिन अखबार में मुझे दिल्ली के इस इंस्टीट्यूट के बारे में पता चला। बस मैंने अप्लाई कर दिया और किस्मत से एग्जाम भी पास कर गई। जैसे ही मुझे दिल्ली जाने का रास्ता मिला मैंने ठान लिया कि यहां तो एडमिशन लेना ही है चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।
जय - तो क्या तुम्हारे घर वाले मान गए? एक छोटे शहर की लड़की को एकदम से इतने बड़े शहर में भेजने के लिए, वो भी अकेले?
नेहा - तुम्हे क्या लगता है इतना आसान था ये सब। लाख समझाने के बाद भी पापा ने साफ मना कर दिया। आखिर में मैंने ही उनसे कहा कि मैं अकेली नहीं रहूंगी। मामा तो दिल्ली में रहते ही हैं उन्हीं के यहां रह लूंगी। फिर भी पापा तैयार नहीं थे लेकिन, मम्मी ने उन्हें किसी तरह समझाया।
जय - फिर...
नेहा - फिर क्या... मुझे तो पता ही था कि ये कोर्स करके छोटी-मोटी नौकरी पाना मेरा मकसद नहीं है। मुझे लगा कि इस पढ़ाई से मेरी राइटिंग स्किल कुछ ठीक हो जाएगी और दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी करने का रास्ता भी खुल जाएगा।
लेकिन एडमिशन लेने के बाद एक नया ही लोचा सामने आया। पता चला कि जिस कॉलेज में एडमिशन लिया है वो तो हमारे स्कूल से भी गया-गुजरा है। सुबह एक बार कैंपस में घुसे तो शाम के पहले बाहर निकलना असंभव।
क्लास भी मिस नहीं कर सकते थे, क्योंकि एग्जाम में बैठने के लिए 75% अटेंडेंस जरूरी थी। सिविल की तैयारी वाले प्लान पर खतरा दिखने लगा। फिर भी मैंने तय किया कि शाम के वक्त सिविल की कोचिंग ज्वाइन कर लूंगी तो दोनों मैनेज हो जाएगा, लेकिन...
जय - लेकिन क्या...
नेहा - तुम तो जानते ही हो, किसी दूसरे के घर की लड़की को अपने घर में रखने में लोग कितना डरते हैं, चाहे वो कितने भी क्लोज रिलेशन में क्यों न हों। मेरे साथ भी वही हुआ।
यहां आते ही रोज-रोज ताने सुनने का सिलसिला शुरु हो गया। इसके बावजूद सुबह तो मैं किसी तरह कॉलेज पहुंच जाती लेकिन, सिविल की कोचिंग शाम को ही हो सकती थी। अब रोज वहां लाता ले जाता कौन? अकेले जाने की परमिशन मिलने से रही। सो, धरा रहा गया सबकुछ...
जय - लेकिन, तुम नौकरी के बाद ही शादी क्यों करना चाहती थी? ये काम तो शादी के बाद भी हो सकता था?
नेहा - हां, लेकिन मैं अपनी जरूरतों के लिए किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहती थी... बस इसलिए।
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