पिछले कई दिनों से जय हर बार ये साबित करने की कोशिश कर रहा था कि नेहा या नेहा जैसी लड़कियां जो छोटे शहरों से आती हैं वो कोई कठोर फैसले नहीं ले पातीं क्योंकि वो अंदर से कमजोर होती हैं या उनमें अपने दायरे को तोड़ने की हिम्मत नहीं होती।
बार-बार कमजोर शब्द सुन कर नेहा परेशान हो गई थी लेकिन, वो कोई जवाब नहीं दे पा रही थी क्योंकि जय की तरह वो मजबूत तर्क नहीं गढ़ पा रही थी। भले ही नेहा का दिमाग जय की बातें स्वीकार कर ले रहा था लेकिन, उसका दिल इसे मानने को कतई तैयार नहीं था।
आज सुबह जब दोेनों की मुलाकात हुई तो जय ने नेहा से कहा- तुम्हें नहीं लगता कि जिंदगी में जब तक रहस्य बना रहता है तब तक जिंदगी में उर्जा और उत्साह भी बना रहता है?
जैसे खिलाड़ियों को ही ले लो। वो पूरे करियर में उतने ही उर्जावान और उत्साहित दिखते हैं जितने कि वो पहले मैच में होते हैं क्योंकि हर मैच जीत जाने की उम्मीद के साथ हार जाने का डर ले कर आता है। यही रहस्य, रोमांच या एडवेंचर उन्हें हर मैच में अपना सौ फिसदी देने को मजबूर करता है।
अपनी बात कहने के बाद जय ने नेहा से फिर सवाल किया- क्या तुम बता सकती हो कि हाल ही में ऐसा कौन सा पल था जब तुमने एडवेंचर या रोमांच महसूस किया, क्या तुम्हें याद है?
नेहा- हां, अभी जब मैं मनाली गई थी तो वहां मैंने स्काई डाइविंग की, मुझे अजीब सा रोमांच महसूस हुआ वहां।
ये कहते हुए उसकी आंखें चमकने लगी और उसका चेहरा खिल उठा।
लेकिन नेहा की ये बात जय को उत्साहित नहीं कर सकी। उसने नेहा की इस खुशी पर अगले ही पल पानी फेर दिया। उसने कहा- इसमें रोमांच वाली कौन सी बात है।
इस तरह के रोमांच तो बच्चों को उत्साहित कर सकते हैं, कोई मेच्योर इंसान इसमें रोमांच का अनुभव कैसे करेगा जबकि उसे पता है कि वो चाहे जितनी भी ऊंचाई से छलांग क्यों न लगाए आखिर में वो सेफ ही नीचे उतरेगा क्योंकि वहां कई स्तर के सुरक्षा इंतजाम पहले से किए गए होते हैं।
बल्कि, जैसे ही इन जगहों पर कोई दुर्घटना होती है लोग तुरंत ही वहां न जाने या उससे बचने की कोशिश करने लगते हैं। जहां परिणाम की अनिश्चितता ही न हो वहां रोमांच का अनुभव कैसे हो सकता है?
नेहा- ऐसा तुम्हारे जैसे इंसान को लग सकता है कि इसमें कोई रोमांच नहीं है। कभी करके देखना। इतनी ऊंचाई से कूदने के बाद जब दिल की धड़कन बढ़ती है और सांसें थमीं रह जाती हैं तो पता चलता है कि रोमांच क्या होता है।
जय ने फिर से नेहा को काटते हुए कहा- लेकिन, अंत में तो मुझे इस खेल का नतीजा पता है कि मुझे कुछ नहीं होगा, मैं सेफ बच जाऊंंगा। ये तो वैसे ही हुआ कि हम मैच देख रहे हों और हमें पहले से ये पता हो कि कौन सी टीम जीतने वाली है।
बल्कि मैं तो कहूंगा कि इससे ज्यादा रोमांच तो लूडो और शतरंज जैसे खेल में होता है जिसमें आखिर तक पता नहीं होता कि जीतेगा कौन। शायद इसीलिए स्काई डाइविंग जैसे एडवेंचर से कहीं ज्यादा लोकप्रियता क्रिकेट या शतरंज जैसे खेल की होती है क्योंकि इसमें अंतिम परिणाम अनिश्चित होता है।
नेहा तुरंत इस बात का कोई जवाबी तर्क नहीं ढूंढ पाई तो उसने कहा- जरूरी तो नहीं कि जिसमें तुम रोमांचित महसूस करो दूसरा भी उसी में रोमांच का अनुभव करे।
ये कहते-कहते नेहा के चेहरे पर तनाव आ गया। उसने ये जताने की कोशिश की कि उसे जय से बात करने में कोई इंट्रेस्ट नहीं है। बहस के बीच अचानक से सन्नाटा पसर गया।
कुछ देर तक दोनों बिलकुल चुप रहे। जय ने महसूस किया कि कोई बात है जो नेहा को बुरी लगी है इसलिए, उसका मूड आॅफ हो गया है।
जय ने बात को बदलते हुए कहा- अच्छा, आजकल मैं कुछ ज्यादा ही पका नहीं रहा हूं तुम्हें? तुम्हें नहीं लगता कि इस तरह के लक्षण सामान्य इंसान में हो ही नहीं सकते।
क्या तुम्हें नहीं लगता कि मैं सनकी सा हो गया हूं या मुझे डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि मैं डिप्रेशन में हूं और इस तरह की अजीब बातें करता रहता हूं?
नेहा- हो सकता है तुम डिप्रेशन में हो, डॉक्टर को दिखाने में कोई बुराई नहीं है। शायद कुछ फायदा मिल जाए।
जय इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि, नेहा ने उसके ही सुझाए दो विकल्पों में से एक को चुन लिया था। उसने खुद ये बात नहीं कही थी। जय को अभी तक इस बात का जवाब नहीं मिला था कि नेहा अचानक परेशान क्यों हो गई है।
उसने नेहा को फिर से कुरदते हुए पूछा- अच्छा, तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि मैं कुछ ज्यादा ही बोलने लगा हूं आजकल?
अब तक नेहा का गुस्सा अपने चरम पर पहुंच चुका था और ज्वालामुखी के लावे की तरह वो अचानक फट पड़ा। उसने कहा- तुम्हारे साथ प्रॉब्लम ये है कि तुम दूसरों पर अपने विचार थोपने की कोशिश करते हो।
तुम चाहते हो कि जहां तुम्हें खुशी मिलती है दूसरे इंसान को भी वहीं खुशी तलाशनी चाहिए। अगर कोई दूसरी जगह खुशी तलाश रहा है तो वो तुच्छ है, घटिया है।
हो सकता है तुम्हें थियेटर देखने में मजा आता हो , लेकिन किसी को अपने परिवार के साथ समय बिताने में उससे ज्यादा मजा आ सकता है। तो क्या दूसरे इंसान को हम तुच्छ मान लेंगे?
जरूरी तो नहीं कि तुम ही ये तय करो कि जिंदगी कैसे जी जाएगी? ये मेरी जिंदगी है और इसे कैसे जीना है इसे तय करने का अधिकार भी मेरा है। मुझे कहां खुशी मिलेगी या मेरे लिए रोमांच क्या है ये मैं तय करूंगी न कि कोई दूसरा।
और मैं डरपोक बिल्कुल नहीं हूं। अगर मैं डरपोक होती तो तुम्हारे साथ कहीं भी, किसी भी समय ऐसे ही नहीं चली जाती। मैं श्याम के साथ अकेले उसकी कार में चली गई, वो कहीं भगा के ले जा सकता था मुझे! राहुल के एक बार कहने पर मैं उसकी बाइक पर उसके साथ चल दी।
क्या कोई कमजोर लड़की ऐसा कर सकती है? मैं भी काॅलेज टाइम में अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने और घूमने फिरने जाती रही हूं। ऐसा तो है नहीं कि मैंने ये सब नहीं किया है?
मुझे जो करना होता है मैं वो करती हूं। मुझे इससे कोई फर्क नहंी पड़ता कि दूसरे को वो अच्छा लगता है या नहीं। मेरे फेसबुक की डीपी मैं इसलिए क्यों बदल दूं कि वो किसी दूसरे को अच्छी नहीं लगती? मुझे अच्छी लगती है इसलिए मैंने उसे लगाया है। किसी के कहने पर तो मैं उसे बिल्कुल नहीं बदल सकती, भले ही दो दिन बाद मैं खुद ही उसे बदल दूं।
ये सब कहते-कहते नेहा की आंख कई बार भर आई थी। जैसे कई दिन से उसने ये सब दबा कर और सहेज कर रखा हुआ था और इसी मौके का इंतजार कर रही थी। नेहा की इस भावुकता ने जय को भी परेशान कर दिया। जय ये सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया जो नेहा को इतना बुरा लग गया।
जय ने बाद में ये महसूस किया कि जब आप किसी इंसान के उस सिद्धांत को ही चुनौती दे देते हैं जिसके आधार पर वो अब तक जिया है तो उसका द्रवित हो जाना स्वाभाविक है। जीवन में रोमांच और उसकी अनिश्चितता की कमी के जिस मूल बात से ये बहस शुरू हुई थी उसने नेहा के जीवन के अब तक के सारे सिद्धांतों को ही चुनौती दे दी थी।
नेहा इस बात को मानने को बिलकुल तैयार नहीं थी कि वो जिन सिद्धांतों पर अब तक अपनी जिंदगी जीती आई है असल में वो उतने मजबूत नहीं हैं जितने वो सोचती है। यही कारण है कि जब इन सवालों का तार्किक जवाब वो नहीं दे पाई तो उसने भावनाओं में बह कर वो सब कह डाला जो उसे बुरा लगा था, लेकिन जय को मूल सवाल का जवाब अब भी नहीं मिला था, पर नेहा को वो और रुलाना नहीं चाहता था इसलिए चुप रह गया।
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