Wednesday 29 August 2018

...उस एक डर के चलते खुद को व्यक्त नहीं होने देती मैं

प्रोफेसर की स्पीच सुनने के बाद उसने बस इतना ही कहा- क्या जरूरी है कि कंटेंप्रेरी वुमन ऐसी ही होनी चाहिए जो मर्दाें की तरह जिंदगी जीना चाहे? यानि वो सबकुछ जो मर्द कर सकते हैं या करते हैं वही सबकुछ एक औरत भी करना चाहती है। तुम्हारे प्रोफेसर के हिसाब से कंटेंप्रेरी वुमन की ये परिभाषा हो सकती है लेकिन, मुझे लगता है कि अपनी परंपराओं से जुड़ी हुई लड़की भी कंटेंप्रेरी हो सकती है।
जय ये सब ध्यान से सुन रहा था और देखना चाहता था कि नेहा इस मसले पर किस तरह रिएक्ट करती है। असल में नेहा को प्रोफेसर के पास ले जाने का उसका मकसद भी यही था। नेहा ने भले ही प्रोफेसर की बात से सहमति नहीं जताई लेकिन, कुछ बातों पर वो सहमत भी थी। उसने माना कि महिलाओं को किसी बात के लिए मनाना या कनविंस करना बहुत मुश्किल होता है जबकि, मर्दाें के साथ ऐसा नहीं है।
नेहा ने अपनी बात के पक्ष में तर्क रखते हुए कहा- औरतों को हर एक बात याद रहती है। वो कोई बात भुलती नहीं। बात कितनी भी पुरानी क्यों न हो समय आने पर वो उसे सुना ही देती हैं। यानि एक बार कोई बात अगर उनके दिमाग में घुस गई तो वो उसे भुला नहीं पातीं।
शायद नेहा ये कहना चाहती थी कि ऐसी कोई भी बात जो औरतों की भावनाओं को छू जाए या उन्हें हर्ट कर जाए वो उसे कभी भुला नहीं पातीं। भले ही कुछ समय के लिए वो उसे दबा लें।
असल में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने हाल ही में एक नॉवेल लिखी थी जिसे ऑक्सफोर्ड प्रेस ने प्रकाशित किया था। अंग्रेजी में लिखी अपनी किताब के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि समकालीन औरत यानी कंटेंप्रेरी वुमन का व्यक्तित्व बहुत कुछ मर्द से ही मिलता-जुलता होता है।
प्रोफेसर की इसी बात पर नेहा को आपत्ति थी। जय जानना चाहता था कि आखिर नेहा को इस बात से परेशानी क्यों है कि एक औरत भी मर्द की ही तरह जिंदगी जीना चाहती है। वो सब करना चाहती है जो एक मर्द करता है।
उसने नेहा को कुरेदते हुए कहा- अच्छा तुम्हें नहीं लगता कि लड़कियों को लाड़-दुलार किया जाना बहुत पसंद आता है?
नेहा- हां, लेकिन तुम उसे लाड़-दुलार नहीं कह सकते। असल में उन्हें लोगों का अटेंशन पसंद होता है। वो चाहती हैं कि लोग उसे देखें, उसके बारे में बात करें, उसकी तारीफ करें...
जय- लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि औरतों, लड़कियों या कंटेंप्रेरी वुमन के बारे में प्रोफेसर के विचार असल में एकतरफा हैं क्योंकि, किसी औरत या उसके व्यक्तित्व का सबसे सही आकलन खुद एक औरत ही कर सकती है? आखिर कोई मर्द ये दावा कैसे कर सकता है कि वो औरत या कंटेंप्रेरी वुमन को समझता है और वो ऐसी ही होती है जैसा प्रोफेसर साहब बता रहे हैं?
नेहा इस बात को गौर से सुन रही थी और ये समझने की भी कोशिश कर रही थी कि आखिर जय इस बात पर इतना जोर क्यों दे रहा है। क्योंकि अक्सर बातचीत में जय ये बात कह चुका था कि लड़कियों को अपनी बात खुद कहनी चाहिए। अपनी फीलिंग्स और तजुर्बे को दुनिया के सामने रखना चाहिए ताकि लोग ये समझ सकें कि औरत चीजों को किस तरह से देखती है। हालांकि, जय के लाख कहने के बावजूद नेहा उसकी बात टाल ही देती।
आज इसी बहाने नेहा की इस झिझक को वो तोड़ने की एक बार फिर से कोशिश कर रहा था। अपनी बात जारी रखते हुए उसने कहा- अब तुम अपनी ही बात ले लो। मेरे लाख पूछने के बावजूद कुछ सवालों का जवाब तुम कभी नहीं देती। आखिर लड़कियों का कैरेक्टर इतना कॉम्प्लीकेटेड क्यों होता है? आखिर क्यों तुम अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करती...
नेहा- औरों के बारे में मुझे नहीं पता लेकिन, अपने बारे में मैं ये कह सकती हूं कि मैं दूसरों को अपनी बात ठीक से समझा नहीं पाती... बस इस उलझन के चलते मैं चुप रहना ही बेहतर समझती हूं।
इस जवाब के बावजूद जय को लगा कि नेहा वो बात नहीं कह पा रही है जो वो कहना चाहती है। उसने दूसरे ढंग से वही सवाल दोहराया- लेकिन जब तक तुम कहोगी नहीं तो ये पता कैसे चलेगा कि तुमने सही कहा या गलत?
नेहा- पता नहीं लेकिन मुझे डर लगता है।
नेहा के इस जवाब ने जय को चौंका दिया। वो समझ नहीं पाया कि आखिर इस डर का क्या मतलब है। नेहा के इस जवाब ने जय को सोच में भी डाल दिया। वो ये जानने के लिए बेचैन हो गया कि आखिर कौन सा डर है जो नेहा जैसी पढ़ी-लिखी और सेल्फडिपेंडेंट लड़की को खुद को व्यक्त करने से रोकता है।
अपनी बेचैनी को संभालते हुए उसने खुद को संयत किया फिर हल्के अंदाज में उसने नेहा से पूछा- ये किस तरह का डर है जो तुम्हें अपनी फीलिंग शेयर करने से रोकता है?
जय के इस सवाल को सुन नेहा मुस्कुरा दी लेकिन, उसने कोई जवाब नहीं दिया। जय ने कई बार पूछने की कोशिश की।
उस पूरी रात जय इस बात को लेकर परेशान रहा कि आखिर नेहा को किस बात से डर लगता है। क्या वो इस बात से डरती है कि जय उसकी भावनाओं से खेल सकता है? या शायद नेहा को डर है कि जय उसके बारे में ऐसा-वैसा न सोच ले? या शायद ये कि आखिर जय भी तो एक मर्द ही है... वो ये कैसे मान ले कि जय उन मर्दाें से अलग है जो औरत को सिर्फ एक शरीर मानते हैं...

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